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परशुराम की प्रतीक्षा - समीक्षा

पुस्तक समीक्षा - परशुराम की प्रतीक्षा


कवि - रामधारी सिंह 'दिनकर'


   परशुराम की प्रतीक्षा, रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में कुल अठारह कविताएं हैं। जिनमें से परशुराम की प्रतीक्षा मुख्य है। इन सभी कविताओं का एक खास उद्देश्य है। ये सारी कविताएं शांति के लिये युद्ध की अनिवार्यता को स्वीकार करती हैं। देश की आजादी और अक्षुण्यता के लिये देश की सेना की शक्ति बढनी चाहिये, इस तथ्य की तरफ ध्यान आकर्षित करती है। केवल शांति और अहिंसा नीति से ही देश की रक्षा संभव नहीं है।


  इनमें से ज्यादातर कविताएं सन १९६० से १९६३ के मध्य लिखी गयी हैं। तीन कविताएं पहले की लिखी हुई हैं। तथा सामधेनी में भी हैं। पर उन कविताओं का स्थान इस संग्रह में होना चाहिये, ऐसा पुस्तक की भूमिका में दिनकर जी ने लिखा है।


  बड़ी अद्भुत बात है कि परशुराम की प्रतीक्षा कविता में परशुराम जी का उल्लेख एक रूपक की तरह है। क्योंकि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी शांति के उपासक थे। माना जाता है कि उन्होंने अपने प्रधानमंत्री रहते सेना के सशक्तीकरण के अधिक पक्ष में नहीं थे। उन्होंने सेना के सशक्तिकरण में बहुत कम निवेश किया था। उनकी नीतियों में भारत की शक्ति पर धन व्यय करना पूरी तरह निरर्थक था। उन्हें विश्वास था कि विपरीत परिस्थितियों में भारत की रक्षा चीन एवं रूस करेंगें। पर भारत के भाई माने जाते चीन ने ही भारत पर हमला कर दिया।


  परशुराम की प्रतीक्षा कविता में कहीं भी नेहरू जी का नाम नहीं है। उसके बाद भी इस कविता में निहित अर्थ ज्यादा गहरा और राजनैतिक है। उस काल के राजनेताओं की सहनशक्ति की भी प्रशंसा करनी होगी। क्योंकि आजकल तो शासन की नीतियों पर प्रश्न उठाना कितना कठिन है, यह किसी से भी नहीं छिपा है।


  इन अठारह कविताओं का अलग अलग उल्लेख कर रहा हूं।


(१) परशुराम की प्रतीक्षा - यह कविता पांच खण्डों में विभक्त है। इस कविता का तात्पर्य पहले लिखा जा चुका है। यह तत्कालीन राजनैतिक विद्रोही कविता है जो कि देश के नैत्रत्व परिवर्तन की मांग को जायज ठहराती है। इसे कांग्रेस विरोधी कविता नहीं कह सकते पर यह नेहरू के शील सिद्धांतों का तो विरोध करती है तथा ऐसे नैत्रत्व की मांग उठाती है जो कि शील सिद्धांतों से देश को मुक्ति दे देश की सेना की शक्ति बढ़ाने पर ध्यान दे। पूरी कविता प्रस्तुत करना उचित नहीं है। पर इस कविता के कुछ भाग जरूर लिखूंगा।


आजन्म सहा जिसने न व्यंग्य थोड़ा था

आजिज आ कर जिसने स्वदेश छोड़ा था

हम हाय, आज तक जिनको गुहारते हैं

' नेताजी अब आते हैं, अब आते हैं'


साहसी, शूर - रस के उस मतबाले को

टेरो, टेरो आजाद हिंद बालों को


***


गाओ कवियों जयगान, कल्पना तानो

आ रहा देवता जो, उसको पहचानो

है एक हाथ में परशु, एक में कुश है

आ रहा नये भारत का भाग्यपुरुष है


***

उपशम को ही जो जाति धर्म कहती है 

शम, दम, विराग को श्रेष्ठ कर्म कहती है 

धृति को प्रहार, क्षान्ति को वर्म कहती है 

अक्रोध, विनय को विजय - मर्म कहती है 

अपमान कौन, वह जिसको नहीं सहेगी 

सब को असीस, सब का बन दास रहेगी 


(२) जवानियाॅ - यह वीर रस से ओत प्रोत कविता है जो कि देश रक्षा में जूझते वीरों को प्रोत्साहित करने को लिखी गयी है। 


नये सुरों में शिंजिनी बजा रहीं जवानियाॅ 

लहू में तैर तैर के नहा रहीं जवानियाॅ 


(३)हिम्मत की रोशनी - यह कविता भी उत्साहहीन के मन में उत्साह भरती वीर रस की कविता है 


उसे भी देख, जो भीतर अंगार है साथी 


(४)लोहे के मर्द - यह कविता संसाधनों के अभाव में भी चीन से युद्ध करते भारतीय वीरों के लिये समर्पित है। 


पुरुष वीर बलवान 

देश की शान 

हमारे नौजवान 

घायल होकर आये हैं 


(५) जनता जगी हुई है - यह वीर रस की कविता से आगे विद्रोही कविता है। 


जनता जगी हुई है 

मूंद - मूंद वे पृष्ठ, शील का गुण जो सिखलाते हैं 

वज्रायुध को पाप, लौह को दुर्गुण बतलाते हैं 

मन की व्यथा समेट, न अपनेपन से हारेगा 

मर जायेगा स्वयं, सर्प को अगर नहीं मारेगा 

पर्वत से उतर रहा है महा भयानक व्याल 

मधुसूदन को टेर, नहीं यह सुगत बुद्ध का काल 


(६)आज कसौटी पर गांधी की आग है - इस कविता में नाम लेकर सीधे सीधे नेहरू जी की नीतियों की आलोचना की है तथा सिद्ध करने का प्रयास किया है कि नेहरू जी की नीतियां वास्तव में गांधी विरोधी हैं - 


अब भी पशु मन बनो 

कहा है वीर जवाहरलाल ने 


(७)जौहर - यह वीर रस से ओतप्रोत कविता है। 


(८)आपद्धर्म - यह कविता एक कवि की मनोदशा का चित्रण करती है तथा यह समझाने का प्रयास किया है कि वह इस समय जो साहित्य लिख रहे हैं, वह उनका आपद्धर्म है। 


अरे उर्वशीकार 

कविता की गर्दन पर धर पाॅव खड़ा हो

हमें चाहिए गर्म गीत, उन्माद प्रलय का 

अपनी ऊंचाई से तू कुछ और बड़ा हो 


(९)पाद - टिप्पणी (युद्ध काव्य की) - वीर रस की कविता है। 


(१०)शांतिवादी - इस कविता का मर्म इसके एक भाग से स्पष्ट करता हूँ - 


माताओं को शोक, युवतियों का विषाद है 

बेकसूर बच्चे अनाथ होकर रोते हैं 

शांति वादियों! यही तुम्हारा शांतिवाद है 


(११)अहिंसावादी का युद्ध गीत - इस गीत के माध्यम से भी तत्कालीन नीतियों का विरोध किया है - 


गांधी की रक्षा करने को गांधी से भागो 


(१२)इतिहास का न्याय - प्रस्तावना के अनुरूप ही यह कविता है जिसका एक अंश देखिये - 


गांधी, बुद्ध, अशोक विचारों से अब नहीं बचेंगे 

उठा खड्ग, यह और किसी पर नहीं 

स्वयं गांधी, गंगा, गौतम पर ही संकट है 


(१३) एनार्की - यह व्यंग्यात्मक लहजे में लिखी कविता है जो कि एक साथ कितनी ही विवशताओं का चित्रण करती है। 


(१४)एक बार फिर स्वर दो - १

(१५)एक बार फिर स्वर दो - २


उपरोक्त दोनों कविताएं वीर रस की और जनता में जोश भरने बाली कविताएं हैं। 


(१६) तब भी मैं आता हूँ - यह आशावादी कविता है। 


(१७) समर शेष है - यह वीर रस के अतिरिक्त व्यंग्यात्मक कविता है - 


अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है? 

तू रानी बन गयी, वेदना जनता क्यों सहती है 


(१८)जवानी का झंडा - वीर रस की कविता है। 


  सच्चे साहित्यकार को हमेशा जनता के लिये आवाज उठानी चाहिये। दिनकर जी सच्चे अर्थों में जनता के कवि थे। जिस साहस से उन्होंने तत्कालीन नीतियों का विरोध किया है, मुझे नहीं लगता कि आज किसी भी रचनाकार में इतना साहस होगा। आजकल तो नीतियों का विरोध भी राजनैतिक हित के लिये ही होता है। जनता के लिये उठ खड़े होने बाले साहित्यकार आज दुर्लभ ही हैं। इस तरह रामधारी सिंह 'दिनकर' जी किसी भी साहित्यकार के लिये प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। 


दिवा शंकर सारस्वत

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