"मैं राष्ट्रभक्त हूं और आजीवन राष्ट्र की सेवा करता रहूंगा !" ---किरण कुमार पाण्डेय
Book Summary
मित्रों ! शीर्षक देखकर ही समझ आ गया होगा कि, यह मनुष्य के कर्मों से जुड़ा हुआ है जो ख़ासकर ऐसे मौकों पर पूछा जाता है जब कभी धर्म संसद बैठी हो अथवा तब जब उसे किसी ज्ञानी के मुख से सुना जाना हो फिर ऐसा क्या है जो इस लेख के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है ? दरअसल इस प्रश्न पर कुछ लिखने का मुख्य उद्देश्य केवल इतना सा है कि, जब कभी हम में से कोई भी किसी कठिन से कठिन प्रश्न का उत्तर जानना चाहेगा तो उसे स्वयं को केवल एकाग्र चित्त करने की आवश्यकता होगी; उत्तर उसे स्वत: मिल जाएगा ! मेरा प्रयास केवल इतना भर है कि, मैं उस सत्य से आपको अवगत कराऊं जिसे आप जानना चाह रहे हैं अथवा जिसे जानने के लिए किसी न किसी स्रोत की जरूरत पड़ेगी ! विषय को और विस्तार से समझाने के लिए आइए आगे पढ़ते हैं...