सोचता हु,
कभी तेरे बिन जीना पड़ा,
तो क्या मै जी पाऊंगा,
नही ना, माँ।
एक तेरी ममता का ही तो,
सहारा है, इस जगत मे,
तेरा प्रेम बिना चल वाला है।
मेरे ह्रदय के सबसे निकट हो, तुम।
कतरा कतरा जीवन का,
बलिदान किया है मुझे पर,
सोचता हू कभी,
तेरे बिन जी पाऊंगा क्या?
आज तेरे उन नरम हाथो को,
मेरा जीवन सुधारते सुधारते
शख्त होते देखा है मैंने,
आज भी जवान सपने,
मेरे लिए पाल रखे तूने,
अपनी आँखों मे है।
बिना भय, लालसा, स्वार्थ के ,
जीवन समर्पित किया मुझ पर,
मेरे जीवन की ,
रीढ़ की हड्डी हो, तुम ।
सोचता हु कभी तेरे बिन,
जीना पड़ा तो कैसी यह,
जिंदगी होगी,
स्वार्थ के सायें मंडरायेंगे
चल कपट का आवरण होगा ।
तेरे बिन जीवन ही ,
निराधार होगा,
तो सुन ना माँ तेरे बिना,
मुझे नही चाहिए जिंदगी,
तेरे बिन नही जी सकते माँ।
आई लव यू "माँ"
भरत (राज) ✍️✍️