रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

स्कूल खुल रहे हैं... शिक्षकों

दो हजार बीस ! सदियों तक याद रहने वाला साल बन गया है। इस समय के लोगों ने इसे महसूस किया है, झेला है और गुजार दिया है जैसे तैसे! पूरी कहानी सुनने की ज़रूरत नहीं है। यह अकेली ही तो कहानी है जिसके किरदार हम सब हैं। वो भी, जो इस कहानी के महागाथा बनने की घटना में हम सबसे हमेशा के लिए दूर बहुत दूर चले गए हैं। तो एक अमिट छाप यह साल हम सबके दिल, दिमाग, जेहन पर छोड़ गया है। और इंसान की जिजीविषा, जूझने की ताकत, बर्दाश्त करते हुए भी निरंतर मुश्किलों से पार पाने की शक्ति के दम पर हम इन्सानों ने इस साल के अंधेरे पन्नों पर भी अपनी छाप छोड़ दी है। हमने नए प्रयोग किए हैं। हमने लोगों से जुड़े रहने के अद्भुत तरीके ईज़ाद किए हैं और संसाधनों की लाख कमियों के बावजूद हमने लोगों को जोड़े रखा है। हम मदद करते रहे हैं और जीवन को रुकने नहीं दिया है। और इसी साल के बीतने से पहले ही हम सक्षम हो गए हैं, मानव को बचाने के नायाब नुस्खे ढूँढने में! उम्मीदों से भरा होगा हमारा नया साल। हम कामना करते हैं और अपनी क्षमताओं का भी निरंतर विस्तार करते हुए लोगों के आगे बढ़ने में अपनी सभी तरह की शक्तियों का दोहन करने को संकल्पबद्ध भी हैं। 
अब जबकि हमारे समाज में सभी चीज़ें निरंतर अपने पुराने स्वरूप में लौटने लगी हैं। हम कह सकते हैं कि जीवन पटरी पर लौट रहा है। जब स्कूल, कॉलेज भी पूरी तरह से खुल जाएँगे तब हम मान सकेंगे कि अब हमारी ज़िंदगी सामान्य हो चुकी है। यहाँ उल्लेखनीय है कि छात्र विविध प्रकार से अपनी पढ़ाई को जारी रखे हुए हैं। हमारी सरकार और हर आम व्यक्ति जिसमें शिक्षक सबसे खास भूमिका में हैं। इन्होने जब तब और जैसे भी संभव हुआ है अपने को शिक्षण कार्य और छात्रों से जोड़े रखा है। बहुत सी चुनौतियों के बाद भी हमने पढ़ने पढ़ाने की प्रक्रियाओं को रुकने नहीं दिया है। और यदि कहीं विराम दिया भी है तो सिर्फ जीवन सुरक्षा के बड़े उद्देश्य के लिए ही!
नई चुनौती नए रास्ते; 
अब हम एक नई चुनौती के लिए भी तैयार हैं। ज़ाहिर है लंबे समय बाद जब हमारे विद्यार्थी स्कूल लौटेंगे तब वे बहुत कुछ भूल भी चुके होंगे। लेकिन इन्होने इस समय में बहुत सी चीज़ों को अपने आसपास और मीडिया के माध्यम से देश दुनिया में रुकते और बदलते देखा होगा। उन्हे डर का अंदाज़ होगा तो संकट से जूझने के अपने परिवार और पड़ौसियों के अनुभव भी वो लाए होंगे। और कौन बच्चा है जो स्कूल से छुट्टी नहीं चाहता है। लेकिन इस समय में मिली अकल्पित, अकूत, अनंत सी लगने वाली छुट्टियों से वे ऊब भी गए हैं। और इसमें सभी उम्र के बच्चे शामिल हैं। चुनौतियाँ शिक्षकों के सामने भी बहुत रही हैं। एक व्यक्ति और अभिभावक के तौर पर भी और शिक्षक होने के नाते भी वे कई प्रकार की चिंताओं से गुजरे हैं। इस दौरान नियमित रूप से होने वाले सामान्य शैक्षिक प्रशिक्षण भी वे नहीं ले पाए हैं। अब जबकि एक अलग स्थिति के साथ बच्चे उनके पास आने वाले हैं तो उन्हे खुद भी कई प्रकार की तैयारियों और बहुत सारे धैर्य की ज़रूरत होगी। शिक्षकों के देखने की बात होगी कि वे इस समय लौटने वाले बच्चों की मानसिक स्थिति को समझें, उनके साथ भावनात्मक तादात्मय बिठाएँ। और यह सब यदि शिक्षक कर लेंगे तो वे पाएँगे कि उनके बच्चे तेजी से सीख रहे हैं। बीती सारी बुरी यादों, किसी भी तरह के डर, तकलीफ से आगे बढ़कर वे अपने भविष्य के लिए तेजी से तैयार हो रहे हैं। 
हमारी नई तैयारी क्या है? 
भरोसा रखिए बहुत जल्दी बच्चे आने वाले हैं। हम जानते हैं कि उन्हे क्या पढ़ना और सीखना है। यहाँ यह सवाल होगा कि क्या हम तैयार हैं इन लंबी छुट्टियों से लौटने वाले बच्चों के साथ काम करने के लिए। हमें अब यह भी सोचना होगा कि जब बहुत कुछ बदल सा गया है तो क्या हम इस बदलाव के हिसाब से तैयार हैं। यह ज़िम्मेदारी शिक्षक वर्ग पर सबसे ज्यादा है। हो सकता है अधिकांश बच्चे पुरानी बुनियादी बहुत सी बातों को लिखने पढ़ने के संदर्भ में भूल चुके होंगे। पर क्या आप इस ओर देख पा रहे हैं कि ये बच्चे एक खुले,निर्भीक और ताज़ा मन मस्तिष्क के साथ आ रहे हैं और ऐसा मन मस्तिष्क दस गुना तेज़ी से सीखने में सक्षम होता है। ऐसे में एक तरफ उन्हे लिखना पढ़ना सीखने की स्थिति में लाना होगा तो दूसरी तरफ ऐसी भी स्थितियाँ सामने आएँगी कि जिनमें उन्हे बच्चों को ढेर सारा भावनात्मक सहयोग भी करना होगा। एक आशंका यह भी है कि आगामी एक दो वर्ष तक जब बच्चे ठीक से नहीं सीख पा रहे हों तो शिक्षक इस स्थिति को एक बहाने के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हो सकता है वो यह कहते हुए पाए जाएँ कि, ‘क्या करें कोरोनाकाल की वजह से बच्चे सब कुछ लिखना पढ़ना भूल चुके हैं अब इनको फिर से सीखने में बहुत समय लगेगा’ ‘लॉकडाउन की वजह से बच्चों पर ये असर हुआ है, बच्चों पर वो असर हुआ है’ इस स्थिति को एक अलग नज़रिये से देखने की ज़रूरत भी है। आप यह भी तो मान कर चल सकते हैं कि बच्चों का दिमाग इस समय सब कुछ सीखने समझने के लिए तैयार है। हो सकता है न कि किसी बच्चे के अपने किसी शिक्षक या सहपाठी के साथ पुराने अनुभव अच्छे नहीं रहे हों, हो सकता है किसी बच्चे को किसी खास विषय के शिक्षक से डर लगता था, तो अब उसके मन से शिक्षक सहपाठी या किसी भी बुरी बात का डर निकल गया हो और अब वो निश्छल सहज मन से स्कूल आया हो और उसके प्रति यदि कोई बुरी अथवा नकारात्मक बात रही भी हो तो उसे शिक्षक सहपाठी भी भूल गए हों। और बिना डरा हुआ मन मस्तिष्क हमेशा ही तेज़ी से सीख सकता है! तो इस स्थिति को ध्यान में रखकर हमारा जो भी कदम उठेगा वो सिर्फ बच्चे को ही नहीं बल्कि शिक्षक सहपाठियों और विद्यालय को भी आगे बढ़ाने वाला होगा। आप यकीन रखिए! 
ऑनलाइन और ऑफलाइन; दोनों तरीकों से सीखना होगा
ऑनलाइन के महत्तव को यह साल हमें सिखा कर गया है। हर आम आदमी से लेकर संस्थाओं और सरकार तक ने इस समय ऑनलाइन का इस्तेमाल विभिन्न तरीकों से निरंतर किया है। सबसे ज़्यादा ज़रूरत शिक्षा से जुड़े लोगों को इसकी हुई है। और शिक्षा से सबसे ज़्यादा शिक्षक और विद्यार्थी ही तो जुड़े हैं ना! अब जब छात्रों की पहुँच में इंटरनेटशुदा फोन आगया है और एक ही क्लिक पर वो दुनिया भर की जानकारी जुटा सकते हैं तब हमारी क्या तैयारी है? यह सीखना भी है और एक चुनौती भी हमारे शिक्षकों के सामने है। क्या वे अब विषयों और पाठों को एकीकृत कर पढ़ाने की योजना बना सकते हैं। पढ़ने के इस्तेमाल किए जा रहे तरीकों के अतिरिक्त भी क्या वे दुनिया भर में ज्ञात अज्ञात तरीकों को खोज कर अपना सकते हैं। आप कर सकते हैं और यह बहुत आसान भी है क्यूंकि अब सारी दुनिया और जानकारीयाँ आपकी जद में आगई हैं। पर यह अतिआत्मविश्वास भी हो सकता है। अपनी सीमाओं को जानना और उम्मीदों के लिए आशान्वित बने रह कर आप एक मजबूत तैयारी कर सकते हैं।और बीता हुआ हर साल हमसे यही तो कह कर जाता है... सीखो, क्यूंकि शिक्षा ही संभावना है और सद्भावना भी !तो आओ, पहल करें,एक कदम बढ़ाएँ उम्मीदों से भरे इस नए साल में….!

महेश कुमार 
जयपुर, राजस्थान  
9414310684

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु