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पर्यावरण

हो सकता है आपको यह मानने में तकलीफ़ हो कि हम सभी अब तक जन्मे इंसानों की सबसे कृतघ्न और लुटेरी पीढ़ी का हिस्सा हैं ! पर सच यही है ! हम बस लेना जानते है ! देने का शऊर हमने सीखा ही नहीं ! हम जो आज भुगत रहे हैं हमारी इसी अहसानफरामोशी का नतीजा है !
ये वो दिन है जब मेरे ख़्याल से हमारी धरती बेहद खुश होगी ! लंबे अरसे बाद कोरोना की वजह से साफ़ हवा में साँस ले पा रही है वो ! नदियाँ नहाई धोई सी है ! जंगल कुछ और हरे हो गये हैं और समुद्र हमारे प्लास्टिक कचरे के लगातार हमले से छुटकारा पाकर पार्टी करने के मूड में है !
ये सब बस इसलिये मुमकिन हो सका है क्योंकि कोरोना से डरी दुनिया ठहरी हुई है ! प्रकृति हमारे लालच की मार से फ़िलहाल बची हुई है और तब तक ही बची रहेगी जब तक कोरोना हमारे सर पर सवार है !
क्या दुनिया भर के ज़िम्मेदार शासक इसे बतौर सबक़ नहीं ले सकते ! क्या उनसे ये उम्मीद करना ज़्यादती होगी कि वे इस बात पर सहमत हो कि पूरी दुनिया हर छह महिने में एक बार हफ़्ते भर के लिये अपने घरों तक सीमित हो जाये ! बिल्कुल उसी तरह जैसे आजकल है ! ये वो वक़्त होगा जब पर्यावरण खुद अपना इलाज कर सकेगा ! प्राकृतिक चिकित्सा होगी ये धरती की ! हवा साफ़ हो सकेगी ! कुछेक हज़ार एकड़ जंगल बच जायेगे ! नदियाँ जी उठेगी ,साफ़ पानी से भर जायेंगीं ! समुद्रो को हमारे फैलाये कचरे से थोड़ी बहुत ही सही पर निजात मिलेगी ! और सबसे सुकून की बात यह होगी कि ऐसा करके हम अपनी अगली पीढ़ी की ज़िंदगी में कुछेक स्वस्थ साल और जोड सकेंगे !
वो धरती जो हमें पाल रही है क्या हम उसके लिये इतना नहीं कर सकते !

 

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