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खिड़की

घर बनाते समय मन में एक उत्साह था बड़ी खिड़कियां बनवाने का. सोचती-आह! लेटे, बैठे जब आकाश की ओर दृष्टि जाएगी  आकाश में तैरते बादल दिखाई देंगे .रात में चांद तारों से बात होंगी.

पर मौसम की मार! तैरते बादल अच्छे लगते, बौछार आते ही धड़धड़ खिड़की बन्द. गर्मियों में रात दिन बंद कपाट पर पर्देऔर खिंच जाते. आप कूलर और ऐ. सी. के आनंद लें या बैसाख का चमकता चांद देखें  ? सर्दी में धूप बालकनी में सकेंगे, खिड़की  का क्या काम ? बस बेचारी रोशनी देने का साधन मात्र बन कर रह गई.

मुझे लगता है यथार्थवादी कविता लिखने के लिए बंद खिड़की अधिक उपयोगी है. चांद को देख कर किसी की याद अब कवि को नहीं आती.बादल को दूत कौन प्रेमी बनाए ? हरेक हाथ में फोन है बस हल्के से छूना  भर है  !!!!

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