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बंगाल की बेलगाम राजनीतिक हिंसा - एक अभद्र चेहरा

बंगाल की बेलगाम राजनीतिक हिंसा

एक अभद्र चेहरा

 

बचपन से हम जिस बंगाल का नाम सुनते आये है वह रवीन्द्रनाथ टैगोर बंकिम चन्द्र] अरविन्दो घोष] शरद चन्द्र] विमल मिश्र] काजी नजरूल और स्वामी विवेकानन्द का बंगाल था जिसका राष्ट्रीय उद्योगों में 24  प्रतिशत योगदान रहा करता था जो आज 4-5 प्रतिशत  रह गया है। एक वह समय था जब सारे भारत का युवा बंगाल पढ़ने] नौकरी और व्यवसाय करने हेतु जाने के लिये  उत्सुक रहता था किन्तु आज बंगाल का युवा पलायन करने हेतु मजबूर है प्राथमिक स्तर पर ही पढ़ाई छोड़ने के मामले में बंगाल पूरे भारत में केवल बिहार राज्य से ही ऊपर है] बाल तस्करी और महिलाओं की तस्करी में बंगाल सारे भारत में शीर्ष पर  है]  महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराध के मामले में भी बंगाल आज शीर्ष पर है। भारत में बंगाल ही ऐसा एक मात्र राज्य है जिसका स्तर आजादी के बाद शिक्षा] व्यापार] उद्योग] रोजगार आदि के मामले में गिरा है] तो सामुदायिक भेद-भाव] सम्प्रदायिक हिंसा] पलायन] आर्थिक और सामाजिक अपराधों के मामले में काफी बढ़ा है। सारे भारत में बंगाल ही एक ऐसा राज्य है जहां अपने राजनैतिक लाभ और वोट बैंक को बढ़ाने के लिये विदेशियों को घुस पैठ करने की मूक सहमत प्रदान की] हिंसा की प्रवृति को बढ़ावा दिया गया एक जाति या धर्म विशेष को हिंसा फैलाने की मूक सहमत प्रदान की गयी] अपनी राजनैतिक महात्वाकांक्षा के कारण ही एक वर्ग और धर्म विशेष को सत्ता के शीर्ष पर बने रहने के लिये राजनैतिक हिंसा करने की खुली छूट प्रदान की गयी] और आज बंगाल की भयावह स्थित पूरे देश के सामने है।

बंगाल में चुनावों के बाद मिले प्रचंड बहुमत के लिये तृणमूल कांग्रेस को बधाई दी जानी चाहिए। किन्तु राज्य में चुनावों के परिणामों के आने के बाद उपजी हिंसा में लगभग 20 लोगो के मारे जाने] सैकड़ो के घायल होने और महिलाओं के साथ हुई अभद्रता ने इस बधाई को कंठ के भीतर ही रोक दिया] यहां तक भी शायद ठीक रहता किन्तु राज्य में मुख्यमंत्री की उम्मीदवार के द्वारा यह कहना कि राज्य में कोई हिंसा हुई ही नहीं है- यह पूरे देश के सामने आ चुके सच को नकारने के कारण और भी अधिक शर्मनाक हो जाता है क्योंकि यह राज्य के एक जिम्मेदार व्यक्ति के द्वारा राजनैतिक हिंसा को बढ़ावा और समर्थन देने वाला हो जाता है] जिसकी निन्दा सर्वत्र होनी चाहिए और हुई भी है।

    लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनावी जीत या हार तक ही सीमित नही है बल्की लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति विरोध और गरिमा को सम्मान के साथ स्थान देने के लिये भी है] सच में देखा जाये तो राजनैतिक जीत और हार की तुलना में जनतांत्रिक तौर-तरीके विरोध का सम्मान भी अधिक महत्वपूर्ण और गरिमामयी है। बंगाल में जीत के बाद हारे हुए लोगो के विरूद्ध जिस तरह से हिंसात्मक क्रिया उपजी वह लोकतंत्र की मर्यादा को नष्ट करने वाली ही कहीं जा सकती है इसके लिए केवल सत्ताधार पार्टी ही जिम्मेदार और निन्दा करने योग्य है। अर्थिक और अपनी भाषायी पहचान के कारण लोग अब भी निशाने पर है] हजारों  लोग अपने और परिवार की सुरक्षा मुख्यता महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से बंगाल से पलायन कर चुके है। स्वतंत्रता के बाद यह पहला अवसर है जब किसी राज्य में चुनावों के परिणामों के आने के बाद इतनी व्यापक रूप से हिंसा हुई] और इस हिंसा में एक विशेष वर्ग अपने धर्म व भाषा के कारण हिंसा का शिकार हुआ है और विशेष बात यह रही कि चुनावी हिंसा के प्रति सत्तासीन व्यक्ति या दल पूरी तरह उदासीन बना रहा] इस बीच भारतीय बुद्धीजीवी वर्ग जिसमें बंगाली सबसे आगे रहता है जो अपने लम्बे- लम्बे लेखों] सम्बोधनों] गोष्ठियों से देश को फासीवादी और संप्रदायकिता के प्रति अगाह करते करते रहते हैं वे सभी जैसे अभिजीत बनर्जी] अमिाताभ घोष] परमव्रत चद्रोपाध्याय] कौशिक बसु] अर्पण सेन] और सबसे प्रसिद्ध बंगाली अमर्त्य सेन सदैव मौन साधे रहे इस हिंसा के विरूद्ध इनकी न जबान हिली और न ही कलम] सहिषुणता और भाई-चारे के सारे प्रतीक और लम्बे चौड़े भाषण जाने कहां गायब हो गये।

    बढ़ती गरीबी और सड़ते शहर बंगाल की अब पहचान हो गयी है। मुस्लिम दुष्टीकरण और बदलता जनसंख्यिकीय अनुपात भी इसका प्रमुख कारण है। आर्थिक समृद्धि और उद्यामशीलता को एक किनारे रख बंगाल का एक वर्ग जो मार्क्स माओ और चेम्सकी के लेखक से प्रभावित होकर अपने आप को समाज में स्थापित करने क प्रयास तो करता है किन्तु वह यह नहीं समझता कि इन विचारकों की प्रसांगिकता स्वयं इनके देश और समाज में अब नहीं रह गयी है तो ये भारत जैसे बहु भाषी] बहु धार्मिक एवं अन्य बहुत से भिन्नताओं वाले देश मे कैसे प्रंसागिक होगी। भारत भिन्नता में एकता वाला देश सदा से रहा है और है तो वे मान्यताऐं और विचार कारगार नही हो सकती जो स्वयं अपने देश और समाज में बुरी तरह ठुकरायी जा चुकी हे।

    राजनीति में विरोधियों को कुचलने का एक वामदंथी तरीका है बंगाल में सत्ताधारी दल ने इसी हिंसक तरीको को अपनाने का प्रयास किया है] यह जाने लेने के पर्याप्त कारण है किन्तु शायद वे यह नही जानते कि बंगाल में बामपंथ के पतन का कारण उनके ही तौर-तरीके ही रहे है जिसे बंगाल की आम जनता ने कभी स्वीकार नहीं किया] सत्ताधारी दल द्वारा की गयी राजनैतिक हिंसा का नुकसान बंगाल की आम जनता को ही होगा बंगाल में बढ़ती गरीबी] बेरोजगारी लगातार उद्योगों और व्यापार का नश्ट होते जाना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है]आखिर ऐसे राज्य में उद्योग धंधे फल फूल भी कैसे सकते है जहां राजनैतिक हिंसा को सत्ता का सहयोग और समर्थन मिलता है।

    बंगाल में 1977 में पहली बार बामपंथ की सरकारी बनी] सच पूछो तो बंगाल में राजनैतिक हिंसा का दौर भी यहीं से प्रारम्भ हुआ और यही से बंगाल के आर्थिक और सामाजिक पतन का दौर भी प्रारम्भ हुआ] विकास तो दूर की बात है बंगाल का आम जन धीरे-धीरे  करके जीवन की मूल-भूत सुविधाओं से भी वांछित होने लगा] 2011 में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आने के बाद उम्मीद थी कि बंगाल की आर्थिक और सामाजिक दशा में सुधार होगा किन्तु यह उम्मीद केवल एक उम्मीद ही बनी रही । राजनैतिक हिंसा का दौर जो 1977 में शुरू हुआ वह आज तक उसी प्रकार से जारी है] सत्ता में बने रहने के लिये तृणमूल कांग्रेस ने भी वही तौर तरीके अपनाऐं जिसके साथ वामपंथी 34 वर्षों तक लगातार बंगाल की सत्ता में बने रहे। विरोधियों को छल से या बल से मार देना वामपंथियों की विश्वव्यावी पुरानी परम्परा रही है] वे सदैव इसी का अनुसरण भी करते रहे है। हिंसा की इस प्रवृर्ति से प्रभावित होकर ही तृणमूल कांग्रेस ने भी बंगाल में इसी तौर  - तरीके का प्रयोग किया। 2021 के चुनाव बंगाल में इस कारण से महत्वपूर्ण रहे कि पहली बार भारतीय जनता पार्टी चुनाव में एक प्रमुख दल बन कर उभरी इस का परिणाम भी रहा कि बंगाल में बामदंथ का पूरी तरह सफाया हो गया तो वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के लोग तृणमूल कांगेस के द्वारा फैलायी गयी हिंसा के सर्वाधिक शिकार हुऐ]  हिंसा का यह वही तरीका था जिसके कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बंगाल में 1977 के बाद कभी उदय नही हो सका और अब यही तरीका बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिये प्रयोग किया जा रहा है] यह भारत में  लोकतंत्र के हत्या का प्रारम्भ है इसका विरोध किया जाना चाहिए] नहीं तो हम अपने प्रिय बंगाल का जो अभद्र चेहरा आज देख रहे हैं वह आगे और भी भयावह होने वाला है।

 

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