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भगवद्गीता शोधपत्र सारांश

भगवद्गीता शोधपत्र सारांश

डॉक्टर मयूर भोईटे, पुणे 

माउंट अबू स्थित ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय शांतिवन में ३ सितम्बर से ७ सितम्बर २०२२ भगवद्गीता महासम्मेलन का आयोजन किया था |इस सम्मलेन की विशेषता यह थी की सम्मलेन में एक शोधपत्र प्रतियोगिता (रिसर्च पेपर कॉम्पैटिशन ) का आयोजन किया गया था | शोधपत्रों की जाँच के लिए एक समिति का गठन किया था | इस समिति में गीता के विशेष जानकार, वरिष्ठ न्यायलय के पूर्व उच्च न्यायमूर्ति ऐसे महानुभव शामिल थे |केरल के सन्माननीय राज्यपाल अरिफ मोहम्मद खान महासम्मेलन के प्रमुख अतिथि थे |मेरा सौभाग्य रहा की मेरा शोधपत्र इस समिति के द्वारा पास किया गया |इस लेख में शोधपत्र की अनोखी बातों का सारांश आपके आगे रखना चाहता हूँ|

शोधपत्र सारांश

मैंने जो शोधपत्र (पृष्ठसंख्या १२/ शब्दसंख्या २६,०००) लिखा उसमें १३ अलग अलग शोधपत्र, पुस्तक, निबंध, ग्रन्थ, वेबसाइट आदि से सन्दर्भ (रेफरन्स) उठाये गएँ थे| शोधपत्र में निम्नलिखित बातें मुख्य रूपसे थी |

Ø  इस्कॉन लिखित "भगवद्गीता - जैसी हैं वैसी" ग्रन्थ से ६० श्लोकोंके सन्दर्भ से यह बात सिद्ध होती हैं, यह मनुष्य के मन के अंदर जो युद्ध हैं उसका रूपक चित्रण हैं | इसमें प्रसिद्ध  श्लोक "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" तथा "समत्वं योगः उच्यते" भी शामिल हैं | यह सारे श्लोक विपरीत परिस्थितयोंमे भी मन को संतुलित स्थिति में बनायें रखने की चर्चा करते हैं |यह चर्चा किसी भी तरीकेसे हिंसक युद्ध की और तरफ दिशानिर्देश नहीं करती हैं| गीता के अंदर कोई भी ऐसे श्लोक नहीं हैं जो रणनीति , युद्धशास्त्र इत्यादी की चर्चा करतें हैं |

Ø  अगर अर्जुन का भगवान के द्वारा उपदेशित धर्म "शस्त्रोंसे हिसंक युद्ध करना हैं ", तो विरुद्ध पक्षी सेनानीयोंका का भी धर्म "प्रतिद्वन्द्व" करना हो जायेगा | और इस तरह- सभी के भगवान के द्वारा उपदेशित धर्मपालन से प्रचंड विनाशकारी युद्ध एवं सामूहिक हिंसा  हो जाना- यह बिलकुल तर्कसंगत नहीं हैं |

Ø  वर्ष १२९० में महाराष्ट्र के एक संतश्रेष्ठ संत ज्ञानेश्वर महराज ने भगवद्गीता का प्राकृत मराठी भाषा में भावानुवाद अपनी ग्रन्थरचना "भावार्थदीपिका (ज्ञानेश्वरी) " में  किया | ग्रन्थ के अंतमें उन्होंने "पसायदान" (प्रसाद दान) नामक एक छोटासा गीत लिखा, जो महाराष्ट्र के लगबघ हर शाला में एक प्रार्थना के रूपमें पठन किया जाता हैं | इस गीत का भाव हैं -" हे दयालु परमेश्वर, आप मुझे प्रसाद के रूप में एक ऐसी दुनिया प्रदान कीजिये जहाँ पर बड़े शीतल ज्ञानी लोग हो, अहंकारयुक्त कठोर स्वभाववाले ज्ञानी ना हो| उस दुनिया में सभी प्राणिमात्रों के यथार्थ इच्छाएं सिद्ध हो, पापियों की पापवृत्ति नष्ट हो| हरेक को अपने सूर्यसम तेजोमय स्वधर्म (स्वयं के दिव्य आध्यात्मिक अस्तित्व) का आभास हो | (दुरितांचे तिमीर जाओ , विश्व स्वधर्म सूर्ये पाहों) ....अंत में , परमेश्वर ने उन्हें ऐसी दुनिया आएगी यह आशीर्वाद(प्रसाद) दे दिया (सुखिया झाला)|" यह मराठी अनुवाद सिद्ध करता हैं - भगवद्गीता के अंत में कलियुग नष्ट हो जाएँ और सत्ययुग आ जाएँ, यह सृष्टिपरिवर्तन का  दृश्य ही एक अनुपम प्रभुप्रसाद हैं| यह बातें ब्रह्माकुमारीज़ के तत्त्वज्ञान से बिलकुल मिलती हैं न की हिंसक युद्ध के तत्त्वज्ञान से | श्रीमदभागवद महाकाव्य १२ (२) भी सत्ययुग के पुनरागमन की चर्चा करता हैं |

Ø  इस्लाम धर्मशास्त्र "पवित्र कुरान" मनुष्य को सन्मार्गपर चलने के लिए प्रेरित करता हैं| उसकी कुछ एक बातें गीता से मिलती हैं, (१)  सर्वोच्च सत्ता अल्लाह एक सर्वोत्तम योजनाकार हैं, हमें अपनी योजनाओंपर, बुद्धिपर ऐसा घमंड उत्पन्न ना हो - मेरी योजनाएं , मेरी बुद्धि सर्वोकृष्ट हैं | (२) बहुत ही प्रयन्तपूर्वक परिश्रमपूर्वक अपने कर्म करों , दुआ करों और बाकी सब अल्लाह पर छोड़ दो | यह बात तो लगबघ "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.." इस गीता के श्लोक से मिलती हैं | (३) सदैव अल्लाह का साथ महसूस कर अपनी मन की शांति, स्थिरता को बनायें रखो | "पवित्र कुरान " की तात्त्विक बातें तो गीता से मिलती हैं परन्तु कुरान के अंदर किसी हिंसक युद्ध का वर्णन नहीं हैं, इससे यह समझा जा सकता हैं - गीतावर्णित युद्ध कोई वास्तविक युद्ध नहीं हैं वह एक रूपकमय बात हैं |

Ø  धम्मपद जो बुद्ध तत्त्वज्ञान का  शास्त्र हैं, उसमें लिखा हैं "तृष्णा", "कामना" एवं "ममता" यह प्रवृत्तियां ही दुःख का मूलकारण हैं| भगवद्गीता का अध्याय तीन एवं अठारह मनुष्य को इच्छाओं से पार जाने की सलाह देता हैं| अब यह दोनों धर्मग्रन्थ मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, एकमें हिंसक युद्ध बात लिखी हैं और दूसरेमें (धम्मपद ) ऐसी कोई बात नहीं हैं , यह विरोधाभास हैं |

Ø  श्रीमदभागवद महाकाव्य १२ (२) में कुछ रोचक बातें हैं -"कलियुग के अंतमें जनसंख्या का विस्फोट होगा और जो व्यक्ति अपनी तरफ जनता को मोहित करेगा वही राजा बनेगा | कलियुग के अंतिम समयमें सिर्फ और सिर्फ पैसा इसी एक चीज की महत्ता होगी | इस समय के राजायें छल कपट , अनावश्यक हिंसा आदि में व्यस्त होंगे|" अहो आश्चर्य , यह बातें आजकल के "वोट बैंक पॉलिटिक्स", "पॉलिटक्स ओनली फॉर पॉलिटिक्स" इत्यादी मिथ्यातत्त्वज्ञानोंसे बिलकुल मिलती हैं | इससे यह सिद्ध होता हैं अबका समय कलियुग के अंत का समय हैं | (इसके अलावा कई धर्मग्लानी के लक्षण श्रीमदभागवद  ग्रंथमे वर्णित हैं , अपितु  शोधपत्र में लिखित  बातें थोड़ी हटके हैं या कहें जो मुझे रोचक लगी उनका वर्णन मैंने किया हैं |)

Ø  आंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन इंटर गवर्मेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज एक सन्माननीय मंच हैं जिसपर पर्यावरण के स्थिति के बारें में विचारसंगोष्ठी आदि का आयोजन किया जाता हैं | इस संगठन में किये गएँ संशोधन के अनुसार विश्व का तापमान लगतार बढ़ता जा रहां हैं , जिसके फलस्वरूप ध्रुवीय बर्फ पिघलती जा रहीं हैं और यह अतिरिक्त पानी समुद्र में जमता जा रहा हैं | साल २०५० में कई तटवर्ती इलाके जैसे मुम्बई , चेन्नई, कोंकण आदि जलप्रलय के शिकार हो जायेंगे | एक अन्य संशोधन पत्रिका "नेचर फ़ूड जुलाई २०२१ (Vol.2, pp. 494-501,)" में प्रकाशित संशोधानपत्र के अनुसार बढ़ती जनसंख्या के कारण अन्न की मांग लगातार बढ़ती जाएगी तथा अन्न की मांग की आपूर्ति करनेवाला कृषिक्षेत्र दिन प्रति दिन घटता जा रहां हैं | यह विसंगत स्थिति मानवता के लिए अत्यंत भयंकर साबित हो जाने की आशंका इस संशोधानपत्रिका में जताई हैं| संशोधनपत्रने अपने दावें के पुष्टि अर्थ ५७ अलग अलग संशोधन साहित्यकृतीयों से सन्दर्भ एकत्रित किये हैं | कितना आश्चर्यकारक संयोग  हैं - विज्ञानजगत के महर्षिओंद्वारा प्रमाणित की गयीं बातें, श्रीमदभागवद की बातें एवं ब्रह्माकुमारीज तत्त्वज्ञान के बातें विश्व के महापरिवर्तन की तरफ इशारा करती हैं | शब्द अलग अलग हैं , प्रमाणित करने के तरीके अलग अलग हैं लेकिन बात तो वहीं हैं - कलियुग का अंत निकट आ पहुंचा हैं |

Ø"नेशनल जिओग्राफिक चैनल" तथा "ब्रिटानिका विश्वकोश" यह दो सुविख्यात प्रतिभाशाली मंच विज्ञान के प्रसारप्रचार कार्य में अहम् भूमिका निभाते हैं | "कामवासना रहित जन्मप्रकिया" के सन्दर्भ में एक रोचक विश्लेषण इन विज्ञानमंचोंपर "प्रमाणसहित एवं उदाहरणसहित" प्रस्तुत किया गया हैं | वर्ष २०१६ में ऑस्ट्रेलिया स्थित एक सुप्रसिद्ध मत्स्यालय में एक शार्क मछली का कामवासना रहित जन्म हुआ | उस टैंक में केवल मादा मछलियाँ थी, नर मछली तो थी ही नहीं परन्तु फिर भी तीसरी शार्क मछली का जन्म हुआ | ब्रह्माकुमारीज तत्त्वज्ञान के अनुसार जब आत्मा अपने सर्वोच्च पवित्र स्थिति में होती हैं तो वह कामजीत होती हैं एवं सत्ययुग त्रेतायुग में आत्मा "कामवासना विरहित पवित्र जन्म" प्रदान करने में सक्षम होती हैं | भले ही  ब्रह्माकुमारीज इस बात को अंधश्रद्धा माना जाता हैं, परन्तु ऑस्टेलिया की यह घटना सिद्ध करती हैं -  कामवासना विरहित पवित्र जन्म सम्भव हैं , यह कोई अंधविश्वास नहीं हैं | अनेक धर्मशास्त्रोमें पाण्डवजन्म, येशु का जन्म इसी प्रकारसे दिखाया गया हैं| वर्ष १६०० से १७०० के कालखण्डमें सज्जनगढ़स्थित (जिल्हा-सतारा, महाराष्ट्र) संत समर्थ रामदासने भी अपनी काव्यरचना "मनाचे श्लोक" के द्वारा ब्रह्मचर्य के महत्त्व को जनता में सिद्ध करने का प्रशंसनीय प्रयास किया जो असफल रहां | मात्र ब्रह्माकुमारीज में यह गीतवर्णित बात यथार्थ रीतिसे उठाई गयीं हैं | ब्रह्माकुमारीज का उद्गाता स्वयं निराकार परमात्मा हैं कोई मनुष्य नहीं यही इस सफल प्रयास का राज हैं |

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