बलात्कार...!!
फिर से सुनी है मैंने चीखे किसी मासूम की,
न जाने कैसे हिम्मत हो जाती है, इन वहशी दरिंदो की....
न जाने कितने सपने वो संजोए बैठी थी,
नही सोचा था, जीवन मे घड़ी आएगी ऐसी भी....
समझी थी एक अच्छा इंसान तुझे और की थी तुझसे दोस्ती,
तू दोस्ती के नाम पर कर बैठा दरिंदगी,
न जाने कितने चेहरे अपने चेहरे पर लेकर तू घूमता रहा....
कोई क्या महसूस कर पाएगा, दर्द उन माँ-बाप का,
चुप्पी साधे बैठना काम है सरकार का,
धर्म और राजनीति से मीडिया को फुरसत कहाँ,
कोई नही उठाता है आवाज, न्याय की यहाँ....
सुनकर खबर रूह काँप जाती है मेरी,
इतनी भारी पड़ी उसे दोस्ती तेरी,
हजारो सपने, लाखो उम्मीदें टूटी होगी,
ना जाने उस मासूम पर क्या बीती होगी....
ना जाने कब इस समाज मे परिवर्तन आएगा,
ना जाने कब बेटियों की जगह, बेटो को समझाया जाएगा,
जरूरत है अब एक सख़्त कानून बनाने की,
जरूरत है अब वहशियों के ज़हन में डर बैठाने की.....
फिर नही डरेगी कोई लड़की, देर रात घर आने में,
फिर कोई नही बोल पाएगा, गलती ये हुई है अनजाने में....! !
@~ Dpk...!!
