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खोता बचपन जिम्मेदार कौन

खोता बचपन जिम्मेदार कौन?

अब ना कोई शोर सुनाई देता है बच्चों का गलियों में।
ना कोई झुंड दिखाई देता है उधम मचाते बच्चों का।
हाथों में मोबाइल, आंखों पर चश्मा नजर आता है छोटे-छोटे बच्चों का।
कहीं बस्ते के बोझ से दबे हुए, कहीं माँ-बाप की इच्छाओं का भार ढ़ोते हुए।
मुरझायें से चेहरे नजर आते हैं।

आधुनिक तकनीकी और पाश्चात्य सभ्यता के बढ़ते प्रभाव से जीवन शैली में बहुत परिवर्तन आया है। इसके प्रभाव से सभी वर्ग और उम्र के लोग प्रभावित हैं ‌ घर के मासूम बच्चे भी इसकी चपेट में घिरे हुए नजर आते हैं।
आपनंधआप चारों ओर मची हुई है। हर कोई लगा हुआ है धन कमाने के पीछे। आधुनिक साधनों को इकट्ठा कर, जीवन को सुगमता पूर्वक चलाने के लिए।
लेकिन इसके पीछे दरकिनार कर दिया जाता है घर के मासूम बच्चों को।
आज बच्चों के पास बचपन है ही कहाँ ? उनके पास तो है बस किताबों का बोझ और हाथ में मोबाइल।
आउटडोर गेम तो बच्चे खेलने ही भूल गए हैं। माता-पिता अपनी अधूरी इच्छाओं को पूर्ति करने का माध्यम बनाना चाहते हैं अपने बच्चों को। अगर कोई व्यक्ति किसी व्यवसाय में चयनित नहीं हो सका तो उसे यह भी अधिकार नहीं कि वह अपनी अधूरी इच्छा अपने बच्चों पर थोप  दे।
सड़कों पर सुबह-सुबह देखो नौनीहाल भारी-भारी स्कूल बैग को लेकर तीन-तीन मंजिल तक सीढ़ियां चढ़कर स्कूल पहुंचते हैं। उस शिक्षा प्रणाली में जो उसके जीवन में ज्यादा काम ही नहीं आती है।
आधुनिक तकनीकी और गैजेट्स के अत्यधिक प्रभाव से बच्चों की मासूमियत पर और अधिक प्रभाव पड़ा है। बच्चे समय से पहले ही बड़े हो रहे हैं। संस्कारहीनता बढ़ती जा रही है। हर वक्त मोबाइल और टीवी पर बच्चों की निगाह रहती है।
अपराधों के चलते भी गली मोहल्ले में अब बच्चे अब खेलते नजर नहीं आते। गलियों में सुनसान पड़ा रहता है।
बच्चे समय से पहले बड़े हो रहे हैं।
बच्चों का बचपन छिन गया है। आज आवश्यकता है सभी माता-पिताओं और परिवार के सदस्यों को, घर के बच्चों को समय दें। परिवार में बुजुर्गों का स्थान भी सुनिश्चित रखें जिनकी छांव में घर के नन्हे पुष्प पल्लवित हो सके।

प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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