रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

झूला वाला पेड़

पर्यावरण विशेष

            झूला वाला पेड़

 

मै अकेला वृक्ष जो कभी झूला वाला पेड़ के नाम से जाना जाता था ,मुझे याद है कि मेरी शाखाओं से बच्चे झूला झूला करते थे। बच्चे ही नहीं बल्कि गांव की महिलाएं और पुरुष सभी झूला करते थे। वो महिलाओं के सावन के संगीत  बच्चों की शरारत भरी खिलखिलाहट, कितना आनंददायक था वह पल। मैं भी कितना आनंद में रहता था।

पर अब न जाने वह आनंद कहां लुप्त हो गया। बच्चे अब बड़े हो गए उनकी जीवनशैली बदल गई। कुछ गांव के बाहर शहर चले गए। जो रह गए उनके खेल खेलने का ढंग बदल गया। जो बच्चे मुझसे खेला करते थे, जो समय मुझको दिया करते थे। वह समय अब मोबाइल नामक यंत्र को देने लगें है। सुना है सारे खेल इसी के अंदर है, वह महिलाएं उनके संगीत से मैं  खुद को और भी हरा महसूस कर रहा था। वह भी अब व्हाट्सएप में तल्लीन रहती हैं। लोग कहते हैं यह मोबाइल उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों यह अपनी मौत से खेल रहे हैं। अभी तक जिस जगह पे मै खड़ा हूं। उस जगह के मालिकाना हक रखने वाले किसी और से पैसे ले रहे थे। शायद उन्होंने मुझे बेच दिया। अब मेरे जीवन के कुछ ही दिन शेष बचे है। मैं जीवन के अंतिम पड़ाव में समस्त मानव जाति से यही कहना चाहूंगा आपने लिए कब्र खोदने का प्रयास न करें जो आपके लिए सही हो वही काम करे।अगर प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने लग गए तो बहुत बुरा होगा । प्रकृति  सदैव तुम्हारे लिए है इसका भरपूर प्रयोग करो। लेकिन अनावश्यक उपयोग तथा  अंधाधुंध कटाई से बचे। प्रकृति से हमेशा कनेक्ट में रहे तभी तुम्हारा जीवन सुधर सकता है

 

कवि भरत मिश्रा

सफीपुर उन्नाव

उत्तर प्रदेश

8318128590

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु