पहली शुरुआत घर से
"रोजमर्रा स्वदेशी हिंदी"
हिंदी केवल एक भाषा ही नहीं है बल्कि पूरे भारतीयों की आन-बान और शान है!
जीवन जीने का एक सहज और सरल माध्यम है, और रोजमर्रा के दैनिक जीवन के बोल-चाल में हमें ये बोध" कराती है कि हमारी असली पहचान वही भाषा है जो लोगों से लोगों को जोड़ती है।
जो घर हो या बाजार" कार्यालय हो या समाज" या फिर कोई "सामूहिक आयोजन" या फिर "मां की थपकी भरी लोरी" या मित्र" की हंसी और आम जन के बीच संवादों का आदान-प्रदान में सबसे सरल" और सहज भाषा है हिन्दी...!
जो पूर्णतः स्वदेशी भी है...!
और हमारी संस्कृति एवं आत्मनिर्भरता का प्रतीक है विदेशी भाषा हो या फिर कोई तकनीक" जैसे- AI जेमिनी गूगल" इन सभी से ऊपर है, हमारी स्वदेशी हिंदी भाषा" इसे बोलना आत्मसम्मान का बोध कराती है न' कि लज्जित...!
इसमें भाव हैं अर्थ है नैतिकता और एकता है।
चाहे कितनी भी बाहरी भाषाएं हमारे भारत" में प्रवेश कर जायें लेकिन हमारी हिन्दी भाषा वो विशाल वटवृक्ष" है जिसकी जड़ें बहुत गहरी और मजबूत हैं इसे कोई भी तकनीकी एप भेद नहीं सकती है..!
न' ही कभी मिटा सकती है...!
बस आवश्यकता है स्नेह रुपी कलम" से हमें इसे सीचने की इसकी जड़ों को मजबूत बनाने की...! अपने शब्दों से एक क्रांति लाने की एक ऐसी लहर" जो युगों-युगों तक अपना अस्तित्व बनाए रखे और अपनी अहमियत कभी न' खोये..! बल्कि अपनी अमिट छाप छोड़े।
लेकिन ये तभी संभव होगा जब इसकी शुरुआत अपने घरों से की जाये वो किसी भी राज्य से हो लेकिन वह रोजमर्रा के जीवन में अपने घर में हिंदी में संवाद करें कोई भी तकनीक हमारे घरों में हमसे संवाद नहीं करती है बल्कि हम ही हिंदी को भूलते जा रहे हैं।
हम ही इस विशाल वटवृक्ष रुपी हिंदी भाषा की जड़ों को कमजोर करते जा रहे हैं।
हमें हर क्षेत्र में भारत के हर कोनें में हर दिशा में हिंदी भाषा का दीप प्रज्ज्वलित करके जन-जन तक समाज में इसकी विशालता से अवगत कराना होगा।
हिंदी के प्रचार-प्रसार के साथ इसकी शक्ति को पहचानना होगा ये भाषा हमारी सबसे पुरातन" भाषा है जो कि "देव भाषा" संस्कृत से निकली है और हमारी राजभाषा के साथ-साथ मात्र भाषा भी है।
जिसे हम भारतीय कभी भी किसी के समक्ष झुकने नहीं देंगे।
फिर चाहे वो ए-आई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) ही क्यों न हो।
हिंदी भाषा भारत माता वसुंधरा की हर सांस और उनकी धड़कन है हर भारतीयों के दिलों में एक महत्वपूर्ण स्थान है चाहे वो किसी भी दिशा से हो पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण" सभी स्थानों पर ये सबसे सरलता और सहजता से बोली जाने वाली भारतीय भाषा है।
लेकिन (अफसोस) दुःख की बात ये है कि, अब इस स्वदेशी भाषा हिन्दी को बोल-चाल के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्णं बना दिया है।
आज की नई युवा पीढ़ी जो इंग्लिश मीडियम स्कूल कॉलेज से पढ़कर निकलते हैं उन्हें हिंदी बोलने में बहुत ही लज्जा आती है।
उन्हें लगता है कि वह पढ़े-लिखे श्रेणियों से नहीं आते हैं कई घरों में अपनी मां को मॉम और पिता को डैड" या पॉप्स और पा" कहकर सम्बोधित करते हैं..!
जो कि सर्वदा अनुचित है।
और उनके टोकने पर चिढ़ जाते हैं, फिर ओल्ड (पुराना) फैशन" ओल्ड जनरेशन" कहकर उनका ही मुंह बंद कर देते हैं..!
और अंग्रेजी भाषा को अपने लिए बेहतर एवं सुविधाजनक" मानते हैं इतना ही नहीं वह लोग हिंदी छोड़ कर अंग्रेजी में बात-चीत करके स्वयं को "गौरवान्वित एवं प्रतिष्ठित समझते हैं।
यहां तक कि कुछ स्कूलों ( विद्यालयों ) और कॉलेजों (महाविद्यालयों ) में माता-पिता का साक्षात्कार" करते हैं..!
और माता-पिता उनके प्रश्नों का उत्तर हिंदी में देते हैं उन्हें ओछी" दृष्टि से देखते हैं, उनकी अनपढ़ की श्रेणी में गणना करते हैं।
और उन्हें बाहर प्रतीक्षा करने के लिए बिठा देते हैं, और जो अंग्रेजी में हर प्रश्नों को उत्तर देते हैं उन्हें हरी झंडी अर्थात उनके बच्चों का दाखिला कर लिया जाता है,।
फिर चाहे उनके बच्चों को हिंदी वर्णंमाला के एक अक्षर भी न आते हों लेकिन उन्हें दाखिला मिल जाता है, और बाहर बैठे प्रतीक्षा कर रहे उन बच्चों के माता-पिता को र्सिफ निराशा का सामना करना पड़ता है जिनके बच्चों नें " कक्षा या जनपद" में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त किया हो।
ऐसे बच्चों के माता-पिता को कुछ घंटों के बाद वापस भेज दिया जाता है ये कहकर कि यहां पर दाखिले की संख्या-(गिनती) पूर्णं हो चुकी है।
फिर वो कितना भी बोले कि हमारे बच्चों नें पूरे विद्यालय अथवा राज्य में या फिर जनपद" में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त किया है।
बिडम्ना ये है कि, माता-पिता नें चाहे स्नातक किया हो या फिर स्नाकोत्तर" लेकिन अंग्रेजी में बात न करने पर उन्हें अयोग्य और माना जाता है।
और अब AI- आर्टिफिशियल इंटेजेलेंटस" ( कृत्रिम बुद्धिमत्ता
जिसनें अपनी उपस्थिति और शाक" दोनों भारत में अपनी जड़ें मजबूत करने में तत्पर है..!
जिसके बारे में बच्चों को भी जानकारी है..!
यदि बच्चों से कोई धार्मिक और आध्यात्मिक या ऐतिहासिक" चीजों के बारे में पूंछो तो वो दादा-दादी, नाना-नानी और माता-पिता से कोई चर्चा नही करेंगे सीधे उनकी अंगुलियां पहले गूगल बाबा पर जाती थीं।
और अब (कृतिम बुद्धिमत्ता) AI तथा जेमिनी" जैसे- डिजिटल प्लेटफार्म AI पर जाकर ठहर जाती हैं और वहीं पर वो अपने सारे प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर लेते हैं।
माना कि विदेशी भाषा का महत्व बहुत बढ़ गया है..! और हमारे बच्चों के लिए आज के हिसाब से और समय के अनुकूल अपनी शिक्षा" कार्य पथ" उद्देश्य" व्यवसाय" पेशा" विभिन्न पहलुओं एवं प्रगति-उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करने में सहायक है..! लेकिन
हमारा उद्देश्य र्सिफ "डिजिटल प्लेटफार्म" में सिमटकर न रह जाये और हमें मानसिक रूप से अपाहिज न करे इसके लिए हर घर हर परिवार में हमें एकजुट होकर कार्य करने समझने और समाज में समझानें की आवश्यकता है।
हर एक चीज की शुरुआत पहले छोटी सी होती है और उसकी शुरुआत पहले अपने घर से ही की जाती है फिर उसे दूसरों तक पहुंचानी पड़ती है उसकी लौ स्वयं के घर में जलाकर फिर बाहर जलानी पड़ती है।
इसकी पहली शुरुआत अपने घर से करनी होगी और अपने घर में रोजमर्रा की बोल-चाल आवश्यकताओं के लिए विलुप्त हो रही हिंदी को र्सिफ बढ़ावा ही नही देना है बल्कि शामिल भी करना है।
नयी युवा पीढ़ी किशोर किशोरियों को सभी छोटे बच्चों को हिंदी भाषा के महत्व को समझाना होगा।
उनसे हिंदी में बात करना अपनी मातृभाषा+ राजभाषा का उचित उपयोग करने के लिए प्रेरित करना होगा उन्हें गुड मार्निंग-
गुड ऑफ्टरनून -गुड इवनिंग और गुडनाईट के स्थान पर ...
राधे-राधे, जय श्रीकृष्णा, राम-राम, हरे कृष्णा, जय श्रीराम" जय माता दी" जैसे- आध्यात्मिक शब्दों को सिखाना उनके महत्व को समझाना हम सभी की जिम्मेदारी होनी चाहिए।
उन्हें डिजिटल मीडिया, डिजिटल प्लेटफार्म, की आवश्यकता और आध्यात्म, अपनी संस्कृति अपने संस्कारों में शामिल करना चाहिए।
उन्हें इस अंतर को और भिन्नता का अर्थ समझने के लिए प्रेरित करना होगा।
AI का इस्तेमाल करना कोई बुरी बात नही है बस उसका इस्तेमाल सही तरीके से करना आना चाहिए जिसमें हम कहीं खो न जायें अपनी भारतीय संस्कृति अपनी हिंदी भाषा से प्रथक न हो जायें।
कहीं भटक न जायें इस बात का भी ध्यान रखना बहुत आवश्यक है।
हमारी हिन्दी सर्वोपरी है हमारी स्वदेशी भाषा है जिसका विस्तार विदेशों में भी हुआ है ये भाषा हमारी स्वदेशी है इसे धूमिल" न करें।
जहां तक मेरी समझ से हमारी हिन्दी भाषा को AI
( कृत्रिम बुद्धिमत्ता ) से कोई डर" या भय अथवा अनिष्ट नही होगा।
ये तो शहरी व्यक्तियों और एकल परिवारों के बच्चों के लिए सहायक सिद्ध होगी।
अंततः इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का उपयोग सही तरीके से करना आना चाहिए।
जहां तक हमारी "मात्र भाषा" पर इस तकनीक का बुरा प्रभाव पड़े या न पड़े इसके लिए भविष्य तय करेगा लेकिन जिन परिवारों में बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं या वहीं पर बस गये हैं!
उनके लिए विचार करने वाली बात जरुर आवश्यक है।
जिन परिवारों नें वहां पर रहकर भी अपनी मात्र भाषा के अस्तित्व को बरकरार रखा है, हिंदी की गरिमा" धूमिल नहीं होने दी है वो परिवार अवश्य प्रशंसनीय है।
और हम सभी को एकजुट होकर अपनी "हिंदी भाषा" को बढ़ावा देना है प्रत्येक दिन हिंदी में एक-दो कविताएं, लेख" और लघुकथाएं लिखकर सोसल मीडिया पर अवश्य डालें।
बिना यह सोचे कि आपके लेखन" को किसी नें पढ़ा या नहीं पसंद किया या नहीं" कितनें लोगों नें देखा है? कितनें लोगों नें अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है?
ऐसे प्रश्नों को अपने मन" से निकालकर डिजिटल तकनीक का सही उपयोग करते हुए सभी हिंदी प्रेमी अपने अंदर छुपी हुई इस कला का सदुपयोग करते हुए हिंदी भाषा को पूरी दुनियां में विस्तार कर सकते हैं।
जिसकी पहली शुरुआत अपने घर" में बात-चीत से शुरूआत करके सोसल मीडिया में इसका विस्तार करें।
जिस तरह से एक छोटी सी माचिस की तिल्ली बड़ी सी मशाल को जला देती है ठीक वैसे ही हमारी हिन्दी भाषा को एक सस्क्त मशाल बनानी होगी एक ऐसा मिशन" जो भले ही छोटा हो लेकिन बहुत असरदार एवं प्रभावी हो!
अंत में यही कहना चाहूंगी कि अंग्रेजी या विदेशी कोई भी भाषा वो उस गिल्ली" की तरह है जो कि हमारी हिन्दी भाषा" से पिटनें को तैयार है हमारी स्वदेशी हिंदी भाषा वो डंडा है जो हर विदेशी भाषा को पीटने के लिए हमेशा तैयार रहेगी।
एक नारा - -चाहे आई, ए-आई या फिर आई गूगल की "जेमिनी लुगाई" हम सबकी हिंदी है सबसे प्यारी... है जो भारत की रानी जो रहेगी सदैव सभी पर भारी...!
इति....✍️
स्वरचित-मौलिक
लेखिका संपादिका - सरिता मिश्रा पाठक काव्या"
