मॉर्निंग वॉक
मार्च 28 2017,
... देर रात तक काम करते करते कब नींद आंखों में आई पता नहीं, सुबह के 6 बज रहे थे, हां शायद 6 ही बजे होंगे, पापाजी ने आवाज दी अनुराग...अनुराग..ग उठो भाई पार्क नही चलना?
मैं हड़बड़ा कर ऐसे नीचे भागा जैसे कोई नया रंगरूट अपने प्रशिक्षण काल में उस्ताद की सिटी सुनकर भागता हैं। ...जी हां उस्ताद, मेरे उस्ताद ही तो थे पापाजी, हर पल एक नया सबक दिया करते थे।
उस सुबह उनकी तबियत थोड़ी नरम थी पर उत्साह में कोई कमी ना थी (वे अक्सर कहा करते थे जीवन में उत्साह है तो हर पल उत्सव हैं, आज ये ही मेरे जीवन का मूल मंत्र हैं।) फिर भी उन्होंने मुझसे अपनी 40 साल की प्रशासनिक नोकरी के कई अनछुए पलो को सांझा करते हुए विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहने की कई किस्से सुनाए।
अगले ही पल मुझें चौकाते हुए उन्होंने अपनी डायरी मेरे हाथ मे दी (ना जाने कब साथ लाये पता नही) और बोले सुनो बेटा पेज नंबर 25 खोलो... मैने तत्क्षण डायरी हाथ में ली और अपने उत्सुकता के घोड़ो को पच्चीसवें पन्ने की तरफ निर्बाध दौड़ा दिया... और पच्चीसवें पन्ने की पहली लाइन पढ़ते ही मेरे उत्सुकता के घोड़ो को मानो लकवा मार गया और वे निस्तेज हो कर धराशयी हो गये।
मैने अपने आंसुओ को बनावटी गुस्से के पीछे छुपाते हुए पापाजी की ओर देखा तो उनकी आंखें पहले से नम पाकर उनके गले लग गया और बोला पापा ये क्यों?
मुझें अपनी बाहों में भरते हुए बोले बेटा तू नहीं समझेगा अभी तू छोटा हैं, पर पापा... मैं कुछ और बोलता उसके पहले उन्होंने मेरे चहरे को अपने हाथों में भरते हुए आंखों में आँखें डाल बोलें देख अब मेरा कोई भरोसा नहीं कब बुलावा आ जाये उस वक्त तुम दोनों भाई इस हालत में नही रहोंगे और हां तुम्हें तो अपनी माँ और परिवार के बाकी लोगो को भी तो संभालना होगा बस इसलिए ये "शोक संदेश" मैने लिख दिया रुंधे गले से आगे बोले बस तारीख तू लिख देना... ????????????
समय अपनी अबाध रफ्तार कभी कम नहीं करता चाहे कोई भी पीछे छूट जाए, आज चार सालों बाद भी मैं उसी पार्क की बेंच पर अकेला बैठा हूँ जहां पापाजी के साथ ये सेल्फी ली थी तब शायद नहीं पता था कि ये आखरी होगी।
ब्रह्मलीन पापाजी को चौथी पुण्यतिथि पर अश्रु तृप्त अंतस से श्रद्धांजलि ।
अनुरागी मन
