सिलाई वाला रविवार
सिलाई वाला रविवार...
बचपन में तो अक्सर ये आम बात हुआ करती थी पर अब याद नहीं आखरी बार माँ को कब सिलाई मशीन चलाते देखा था, पर आज दुपहरी में माँ अनायास हाथ में तेल की किप देकर बोली सुन मशीन में थोड़ा तेल देदे कई दिनों से चली नहीं, आवाज कर रही है।
...मैं चौक कर उठा और तेल की किप लेकर उसी कनिगे से मशीन के हर एक छेद को तेल पिलाने लगा जैसे बचपन मे पिलायाता करता था, कुछ ही देर में मशीन की वही जानी पहचानी आवाज कानो में घुल गयी।
इस मशीन से ना जाने माँ ने हम भाई बहिनो के लिए कितनी एक सी ड्रेसेज सिली होगी जिन्हें पहन कर हम सभी किसी गुलदस्ते में सजे खूबसूरत फूलों जैसे दूर से नजर आया करते थे।
आज समझ आया कि मां की ये सिलाई मशीन कपड़े नहीं हम छ: भाई बहनों के बीच प्यार सिला करती थी जिसकी बेजोड़ सिलाई आज भी उतनी ही मजबूत है जितनी ये पैंतालीस साल पुरानी सिलाई मशीन।
अनुरागी मन
