एक शाम किनारे जैसी...
एक शाम किनारे जैसी...
सब ख्वाहिशें, खाब, इंतेज़ार, साहिल पे आ बसी
तुझसे मिलने की चाह में,क्या क्या न बर्बाद हुआ
राह तकती रही सरे शाम, साहिल पर खड़ी खड़ी
पहर सुरमई से सियाह रात कब हुई मालूम न पड़ा
कब आएगा महबूब मेरा,भर लेगा बाहों में अपनी
इसी आस में हर शाम हुई बेज़ार मालूम न पड़ा
Anjju