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मैं और मेरा नासमझ इश्क

यूं रात की ठंडी हवाओं का बहना

उस पर से कोयल का कुहू कुहू करना


जैसे याद दिलाती हों वो बातें मुझे

तेरा मेरी हर बात पर सवाल पूछना


बताओ न तुम इश्क समझते हो

मेरे न कहने पर तेरा मुस्कुरा कर समझाना


गंगा की लहरों किनारे आती ठंडी हवाओं बीच 

तेरा चाय के बहाने बतियाना मुझसे तुनक जाना


मैं आज भी नासमझ हूं तेरे समझाए इश्क से

लेकिन अच्छा लगता है तेरी यादों में बहक जाना


तुमसे इश्क बात करता रहा पर मुकम्मल न हुआ

बेहतर लगा मुझे बनारस संग इश्क में डूब जाना


-भैरव ✍️

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