मैं, समझ से परे...
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मैं...समझ से परे ????
थोड़ी अकड़ू थोड़ी खड़ूस हूँ
पर दिल की हूँ नाज़ुक बड़ी
थोड़ा डांटती थोड़ा हड़काती हूँ
पर रखती हूं बड़े प्रेम से सभी को
समझ से परे है शख्सियत मेरी
जिसने जाना,फिर न पूछा कौन हूँ मैं
नहीं आता जी हजूरी करना मुझको
इसीलिए खटकती हूँ सभी को यहां
हूँ उसूलों की पक्की ज़रा सी
तोड़ने में भी आता मज़ा बड़ा
आता नहीं बेवजह पत्थर मारना
खा सकूं फटकार किसी की
ऐसी भी मैं मासूम नहीं...
ग़ैरों की राह भाती नहीं मुझको
अपना मानूँ तो राह उसकी छोड़ूं नहीं
मैं भी एक ???? दिल रखती हूं
रखा जाय मुझको भी ???? दिल में संजो कर...????
Anjju