ताखा गौंखा ढूंढ़ रही हूं
ताखा गौंखा ढूंढ़ रही हूं, वही खिलौना ढूंढ़ रही हूं,
बाबा की अंगनाई आई,चंदा मामा ढूंढ़ रही हूं ।।
नज़र उतारा मां करती थी,राई लोना ढूंढ़ रही हूं,
काश! गए दिन फिरके आते,जादू टोना ढूंढ़ रही हूं ।।
कहां गई बचपन कि गुड़िया,कोना कोना ढूंढ़ रही हूं,
चोट लगी फूंका था मां ने,रूई फाहा ढूंढ़ रही हूं ।।
ख्वाबों और किताबों के दिन इक इक लम्हा ढूंढ़ रही हूं,
रात गुजरती थी आंखो में, किहनी किस्सा ढूंढ़ रही हूं।।
साथ चलूंगा पग पग तेरे,भूला वादा ढूंढ़ रही हूं,
सिर रखके जी भरके रोलूं ,ऐसा कांधा ढूंढ़ रही हूं ।।
गीता सिंह "शंभु सुता"
प्रयागराज
