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नन्ही कली

नन्ही सी कली थी वो,

बाबा के आंगन में पली थी वो,

घर की खुशियों की चाभी थी वो,

माँ की राजदुलारी थी वो,

सपनों के पंख लगा उड़ना चाहती थी वो,

और छूना चाहती थी ऊंचा आसमान वो...

पर ये हो न सका।।।

उड़ती उन बादलों के पार, उस से पहले ही एक वहशी दरिन्दे की नजरों में आ गई थी वो,

आसमान खुद रो पड़ा था जब इस दुनिया से विदा हो चली थी वो,

हर शख्स रो पड़ा था खड़ा था जो राह में..

बाबा के कंधों को अपनी ही अर्थी का बोझ दे चली थी वो....

नन्ही सी कली थी वो

अब कहीं खो गई थी वो।।।

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