टेसू
टेसू
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पेड़ काटने की
मुहिम में
पहली कुल्हाड़ी
गर्दन पर पड़ते ही
मैं कटने की
बैचेनियों को समेटकर
और हरा होने की कोशिश में
देता हूं चटक फूलों को
जन्म
गर्म हवाओं से
जूझने की ताकत
कटी हुई डगालों से गिरकर
चूमता हूं
उस जमीन को
जहां में अंकुरित हुआ
और पेड़ बनने की
जिद में बढ़ता रहा
इसमें शामिल है
अपने होने के सच को
बचाए रखना
फागुन में
अपने प्रिय मित्र
महुए के साथ मिलकर
पी लेता हूँ दो घूंट
फिर बेधड़क झूमता
घूमता हूं
बस्तियों में
छिड़कता हूं
पक्के रंग का उन्माद
तोड़कर मेरी देह से
हरे पत्ते
बनाएं जाते हैं दोना-पत्तल
जिन्हें बाजार में बेचकर
गरीब अपने बच्चों का
पेट भरते हैं
मेरा हरा रहना
धरती का हरा होना है---
"ज्योति खरे"
