रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

माना कि अंधेरा घना है

आजकल हर छोटी बात का श्रेय लेने और ढिंढोरा पीटने वालों के लिए नहीं बल्कि मेरी यह ताज़ा कविता उन तमाम हीरो को समर्पित है जो गुमनामी में रहकर लोगों की जान बचाने में जुटे हैं।
बहरहाल, मेरी कविता "माना कि अंधेरा घना है" :---

माना कि अंधेरा घना है
-----------------------------

बेशक
रुंध गया हो गला
अस्पताल
या घर में मचे
हाहाकार से
चीख-पुकार से
पीड़िता के आर्तनाद से
खुद को ही सुनाने के लिए जैसे
सुबक रहा हो पीड़ा।

बेशक
अनजान हैं
तल्ख हकीकत से
शासन-प्रशासन के लोग
कि बस के बाहर है अब
महामारी का नियंत्रण
और अपने धत्कर्म से
बाज नहीं आ रहे हैं
कुछ दोपाए दरिंदे।

माना कि अंधेरा घना है
माना कि भयंकर वज्रपात है
नियति का
ऐसे में ही निकलते हैं
हमारे बीच से
कुछ गुमनाम हीरो
जो ढोते हैं अहर्निश
विश्वास अपने कंधे पर
बल देने के लिए
हमारे विश्वास को।

संजोते हैं हम
अपना खुद का हौसला भी
कि हमें रखना है ऐतबार
अपने अंतस की रोशनी पर
दूर करना है अंधियारा
समूची धरती का।

माना कि अंधेरा घना है
पर, रात के बाद
नई ऊर्जा, आशा
और विश्वास का
सवेरा ही आना है।
------------------------

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु