मां!आखिर ऐसा...
मां!आखिर ऐसा ....
बचपन बीते जिस आंगन में,
यौवन लेता हो अंगड़ाई!
भाई-बहन नित लड़े जहां
कहते सब अरे! तू तो है पराई!!(१)
मां! आखिर ऐसा क्यों होता है...
सपने लेते जन्म जहां
उपज नई नित होती हो!
हंसती-गाती-मुस्कुराती,पर
विदा रोती हुई होती हो!!(२)
मां आखिर ऐसा क्यों होता है......
पढ़े-लिखे आगे बढ़ती जाए
ऊंचाइयों को छू ले,वो भले!
सीचें खून से बिरवा बेटी का,
उस घड़ी उसे सब छोड़ चले!!(३)
मां!आखिर ऐसा क्यों होता है......
हर पल बस सोचे आगत की
आज को संवारा ही किए!
लाड़ करे दिल से वो भरसक
घूंट जहर की रह मौन पिए!!(४)
मां!आखिर ऐसा क्यूँ होता है.....
रीत जगत की सभी निभाते
तुमने भी तो यही किया
काश!कभी तो पूछा होता
चुप रह जीवन क्यों जिया!!(५)
मां!आखिर ऐसा क्यूँ होता है.....
तनहा छोड़ अब चली गई,तुम!
हर क्षण मेरी परीक्षा है!
सत्य कहूं!गोद मिले मुझको तेरी बस
आज यही दिल से इच्छा है!!(६)
मां!आखिर ऐसा क्यूँ होता है.....
आंसू का कोई मोल नहीं,अब
नहीं पूछता कोई उदासी!
नीर भरे नैनों में मेरे
होठों पे रहती झूठी हंसी!!(७)
मां!आखिर ऐसा क्यूँ होता है.....
दिल से एक अरज है मेरी
साया ही दिखला दे,तेरा!
कोई पल ना बीते,तेरे बिन
मुझे रहा सहारा सदा से तेरा!!(८)
मां!आखिर ऐसा क्यूं होता है........
कल्पना गोयल, जयपुर