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आजमाना

आजमाना,  


प्रकृति का 

कण-कण 

आजमाईश 

की कसौटी 

से गुजरता है 

और यह 

कसौटी कसता 

केवल इंसान है 

जीव -जंतु 

पेड़ -पौधे  

खेत -खलिहान 

यहाँ तक की 

मनुष्य स्वयं 

मनुष्य के लिए भी 

हरेक के  

अलग -अलग 

मायने है 

कसौटी पर 

खड़े उतरने के 

पुष्प सुगंध से 

माटी उर्वरा से 

पशु उपयोगिता से 

सागर गहराई से 

नदी बहाव से 

पेड़ छाँव से 

पक्षी कलरव से 

उतरते है कसौटी पर 

लेकिन मानुष 

नहीं उतर पाता 

मानुष को 

हर पहर पार 

करनी होती है 

जिन्दगी की 

एक नई कसौटी... 

मानव का कोई 

एक रंग,  रूप 

गंध, उपयोगिता नहीं 

वो तो वक्त के 

साथ बदलता रहता है 

अपना स्वरूप  

शायद इसलिए 

हर मोड़ पर 

आजमाया जाता है...

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