रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

सपना

आज सपने में देखा
तू उतरी श्वेत बादलों से
आसमानी जींस सफेद टाप
में जो अक्सर तुम्हारा
परिधान रहा है श्वेत रंग
माना जाता है प्रतीक
लगा परि उतर आई
धरा पर
जाने क्यों मुझे भी शायद
ये परिधान तुम्हारा
आकर्षक लगता है
शायद मुझे भी तो
श्वेत व नीला रंग
कुछ अधिक ही भाता है
तुम ठुमकती इठलाती
बड़ी अदा से पास आई
फिर इस कदर मुस्काई
कि मैं समझ ही नहीं पाई
कि इतने में एक झप्पी पाई
उस अहसास कर ही पाइ
कि अचानक नींद खुल गई
तुम नजरों से ओझल हो गई
तकती ही रह गई अंखिया
होकर बोझल बोझल सी

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु