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वेदना



उस रोज 

जब तुम हमेशा के लिए चली गई थी


रात!


चढ़ने लगा था आसमान में

पूरे सुरूर के साथ चाॅंद


और 


 उड़ेलने लगी थी रातरानी अपना प्रेम 

बहती हवाओं की देह पर


दूर कहीं जैसे कोई संगीत भी बज उठा था


ठीक उसी वक्त


मैने खुद को किसी मरघट में पड़े पाया

एक प्रेत जैसी आकुलता के साथ


सिर्फ तुम्हारें बिना!


 

उस रात 

कौन था इतना खुश ?


 ईश्वर!

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