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छोटी कविता

1)

इक हरी आंखों वाली 

पहाड़न लड़की 

बर्फ की चादर ओढें 

सुबह की ओस की तरह निश्छल

बेतहाशा भागती जा रहीं थी

पूछा था मैने उससे 

हांफती-सी कहा उसने

''मेरे पडो़स में 'शहर' आ गया हैं।

2)

तुम्हारी हंसी 

मानों किसी व्याकरण से बंधी है

जिसमें खनक कम

उदासी अधिक है।

3)

जहां छोड़कर गयी थी तुम

वह क्षण आज भी ठहरा  हैं

आंखों में उदासी की भाप लिये

अपनी पूर्णता के इंतजार में

4)

जिस तरह असंपृक्त रहता हैं

जल की बूंदों से

अरबी का पत्ता

ठीक वैसे ही

वह भी असंपृक्त रहीं

मेरी हर कालिमा से।


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