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दर्द की ज़ुबॉं जैसा


न जाने आंखों में ये क्या है आसमां जैसा,

झिलमिलाता है कोई ख़्वाब कहक़शाँ जैसा।


ज़मीं सेे दूर तसव्वुर के नर्म साए हैं,

हां वहीं तो है तमन्नाओं का जहाँ जैसा।


मेरा ख़ुलूस ज़रा देख आंधियों में भी,

क़श्ती ए दिल पे उड़ रहा है बादबाँ जैसा।


तू हमें इतना बता दे ऐ शम्अ ए मेहफ़िल,

तेरे दामन में क्या छुपा है ये धुआँ जैसा।


कोई तो ख़ास निशानी हो रहनुमाई की,

ये राहज़न भी तो दिखता है रहनुमा जैसा।


ऐशो इशरत में बेमिसाल उन मकानों में

ना मिला कुछ भी मोहब्बत के आशियां जैसा।


ब्याज दर ब्याज ज़िंदगी वसूल ली जिसने,

वो ही लगता रहा हमें तो मेहरबाँ जैसा।


जाने किस मोड़ पे तन्हा वो हमें छोड़ गया,

एक अनजान सा साया था हमनवाँ जैसा।


मुस्कुरा कर पढ़ो "निशात" लोग ये न कहें,

तेरा सुख़न है किसी दर्द की जुबाँ जैसा।


ख़ुलूस - जोश, उत्साह

रहनुमाई- राह दिखाना

राहज़न - लुटेरा


           "विमल निशात"

(vimalnishaat10@gmail.com)

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