अब तो मन ही भया वृंदावन
अब तो मन ही भया वृंदावन
डोले श्रीधर मनमोहन
सांस की डोर बंधा पलना मन
झूलो झूलो यशोदा के लालन
तुम बोलो तो झूले त्रिभुवन
अब तो मनी ज्योति रूप
रस रस रंग गंद सर
अनहद नाद तुम ही नट नागर
कण-कण तेरा ही नर्तन
अब तो काशी काबा ए गुरुद्वारा
अंतर घाट अमृत की धारा
बरसी नित्य प्रेम की धारा
अब तो अगम असीम अनादि अनंता
परम ब्रह्म तुम्हें भगवंता
जड़ चेतन तेरा ही दर्पण
अब तू गगन धरा जल अग्नि पवन
तुम श्रेष्टा तुम संहार श्रजन तुम
शुभ जीवन मरण भी पावन
अब तो चरणों में ही जगत निदाना
अहो भाव से तन मन प्रणाम
तुमरा ही तुमको अर्पण
अब तो मन ही भया वृंदावन
विमल 'निशात'
(vimalnishaat10@gmail.com)