कविता -पिता
"पिता"
आंधी में जो खेवे नैया
संकट में बन पतवार
जय पराजय से नही मलाल
तनमन झेले जख्म हजार
निलिमा में खो जाए पतंग
जब तक डोर तेरे हाथ
लोह-सा तन व्याकुल मन
पग पग देता साथ
विशाल वटवृक्ष देता छाया
बने रेशम-सा बिछोना नर्म
हौसलो से लिखता तकदीर
दिल मे दफनाकर कई मर्म
एक हाथ दे रखा सम्हाल
एक हाथ से देकर मार
ढाल दिया देकर आकार
शत शत नमन तुम्हे मेरे कुम्हार
-कीर्ति अग्रवाल
