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अब जरूरत बदलाव की



अपने कायदों पर जीने की चाहत से
बिक गयी जिंदगी शर्तो के बाजार में
सब्र हौसला सब भाषा के हाशिये पर
बस बदले की आग बची व्यवहार में

बड़ो का आदर, छोटो को स्नेह
सब भूले दिखावे की मारामार में
बहने लगा झूठ फरेब नस नस
रिश्ते नाते मतलबों की कतार में

हर लम्हा लढ गया अगले लम्हे से
सही वक्त के इन्तजार में
खुशनुमा पलों को पाने के लिए
पल खड़ा पल पल कगार में

साल दर साल बस यूं बीतते जाएंगे
क्या रह जायेगा इस संसार मे
पहचान कर जीवन जीने का मंत्र
लाना होगा बदलाव आचार विचार में
-कीर्ति अग्रवाल

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