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जिंदगी जिना चाहती हूं।

जिदगी जिना चाहती हूं।


ये मत पुछ,

मै तुझसे क्या चाहती हूं?

मै तो बस,

अपनी जिंदगी जिना चाहती हूं।

 फुलो की वादीयो में,

गुम होना चाहती हूं।

काली काली घटाओं में,

बस जाना चाहती हूं।

खेतो में खलीयानो में,

बनकर पंछी चहचहाना चाहती हूं।

हरियाली इस धरा के,

संग डोलना चाहती हूं।

पर्बत झरनो में,

डुब जाना चाहती हूं।

आ तू बन कर तुफान,

संग तेरे बहना चाहती हूं।

ये मत पुछ,

मै तुझसे क्या चाहती हूं?

मै तो बस,

अपनी जिदगी जिना चाहती हूं।

©®अस्मिता मेश्राम (प्रशांत)- पुष्पांजलि

भंडारा, 9921096867

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