जैसे होली है जिंदगी
लड़कपन था उम्र का,पर सारे रंगों की पहचान सही थी...
माना जैसे आज "होली" है जिंदगी वो भी आसान नही थी...
बचपन में खेले हुए रंग शाम तक कमजोर पड़ जाते थे...
जलाते थे होलिका और सब खुशियां मनाते थे...
गले मिलते थे , तो अपनेपन का एहसास होता था...
रंग चेहरे पर नही दिल पे लगने वाला खास होता था...
अब बड़े शहरों में सिर्फ त्यौहारों का रिवाज बाकी है..
इको फ्रेंडली कलर्स है मगर ,सब के सब दिल ही ख़ाली है...
चेहरे पर लगा हुआ रंग साफ करे या ना करे...
पर दिल मे रखे हुए सारे बैर मिटाते है.....
आओ एक बार फिर उसी अंदाज में दिल से "होली" मनाते है....
अमर विश्वनाथ परांजपे
#AVP
