दूसरा किनारा
दूसरा किनारा
साथ छूट रहा है अपनोका
एक एक कर टूटते तारे दिखने लगे है
पके फल अब पेड़ से गिरने लगे है
उनकी कतार में अब हम भी खड़े है
यादे पुरानी ताजा होती
किस्से पुराने जब याद आते
आंखे अचानक नम होने लगी है
दूर कहीं कोई बुलाने लगा है
उम्र का ये पड़ाव जल्द ही
किनारे लगने वाला है
अहसास अब ये
अकसर होने लगा है
नही नकारात्मकता के भाव
ये तो वास्तव के शब्द है
चलो स्वागत करें उस किनारे का
जो बाह फैलाये खड़ा है तुम्हारे लिये
किरण कालवे
जबलपुर
