रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

कलम

किसी दुख से व्यथित कोई मन जब शब्दोककी माला बुनता है

अपने दुख में औरो के हर सार्वभौमिक दुख को अपना सा सुनता है

उन दबे अल्फाजो को आवाज देने को ही कलम का माध्यम चुनता है

जाने कितने जाने अनजाने प्रश्नो को चिन्तनों को फिर गुनता है

 

कभी हर्ष मेरा जब उस ऊँचे गगन को छूकर आता है

हर शब्द मुख बिंदु से निकल जब गीत गज़ल बन जाता है

लेकर कलम फिर हाथों में प्रकृति की उपमा उपमानो से उसे सजाता है

हर सुख मेरा जाने कितने अनजाने को अपना सा नज़र आता है

 

होता है जब अन्तःकरण ये द्वन्द मे साथी बन मुस्काती है

हर वक्त सच का साथ मैं दे जाए प्रेरणा मेरी बन जाती है

हृदय छिपे हर शख्स के अक्श को दुनिया को दिल्ली है

कलम में है शक्ति वो जो कभी अपने को हस्ती रूलाती है

 

क से शुरू हुई जो लिपि कलम से भेट पहली बार कराती है

ल से लाभ को छोड़कर जीवन दर्पण सा बनाता है

म से मर्यादा में रहकर भी सत्य कथन करवाती है

इसलिए ही तो ये कलम कँही भी ना खरीदी बेची जाती है

 

हर गुलाम जब कलमबद्ध टैगोर गांधी का अध्ययन करते हैं

बिन देखे बिन मिले भी इनसे जीवन इनका दर्शन करते हैं

मृत्यु सभी की अटल है पर लिपिबद्ध भाव कभी नहीं मरते हैं

कलमबद्ध साहित्य वो बनकर इतिहास उजागर सदा ही करते हैं

 

धार लेखनी की ही तो हम सभी को एक सूत्र में रखती है

ये लिपिका प्रेरणा देने ही कागज का स्पर्श नित चखती है

अक्षरजननी अक्षरों को छंदो रसो अलंकारो से देती शक्ति है

तलवार और आयुधो से अच्छी तुलिका की भक्ति है

स्वरचित ©द्वारा सीमा शुक्ला चाँद 

 

 

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु