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माऊली

माऊली


रूप ज्ञानोबाचे। सात्विक सुंदर।कैवल्य मंदिर। आळंदी ती।।१।।


झुळुझुळू शांत।वाहे इंद्रायणी। 

ज्ञानदेवा मनी। आठवते।।२।।


माय तात दोघे। देहान्त पावले।परी नाथ झाले।

सामान्यांचे।। ३।


संस्कृतात बध्द् । गीताा भागवत। 

बोले मराठीत। सहज ची।४।।


मांडे भाजण्यासी। भाता पेटविला।उदरी तापला। दिव्य अग्नि ।।५।।


संन्याशाची पोरं। हीणवती जन। दुखावले मन। ज्ञानराजा।।६।।


ताटी लावूनिया। बसला का खिन्न।मन ही विषण्ण। झाले का बा।।७।।


बोललीसे मुक्ता। चिंता क्रोध सोडा। धीर धरा थोडा। ज्ञानादादा।।८।।


मुक्ताईच्या ओठी। ताटीचे अभंग। ऐकुन तरंग। उठे मनी।।९।।


शुध्दीपत्रकाची। मागणी करुन। पावित्र्य प्रमाण। घेती ब्रह्म।।१०।।


सकळ जीवांचे।  कल्याण चिंतले।  दुरित हरले।ज्ञानदेवे।। 11।।


कार्तिक महिना।वद्य त्रयोदशी।लोपला हा शशी।

 समाधीत।।12।।


ब्रह्म आणि ज्ञान।  झाले एकरूप। विठ्ठल स्वरूप। ज्ञानीया  हा।। १३।।


-सौ स्वाती रत्नपारखी

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