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माटी के मितान

 

             ।। माटी के मितान ।।

नागर बईला धर के निकलथस

कहलाथस तै किसान ग।

खाय पिये के सुरता नई राहय

निकलथस तै होवत बिहान ग।

तोला कहिथे माटी के मितान ग।

 

नुन चटनी म तै खाथस बासी ग

गिरत पानी म करथस बियासी ग।

तोर मेहनत म परिया घलो हरीयागे

सुघ्घर दिखे खेत खलिहान ग।

तोला कहिथे माटी के मितान ग।

 

खून पसीना ल तै ह एक करके

जांगर टोर कमाथस ग।

बंजर भुईयां म नागर चला के

अन्न तै उगाथस ग।

तोर मेहनत हावय तोर पहिचान ग

तोला कहिथे माटी के मितान ग।

 

नागर बईला तोर संगवारी

सबके पालन पोषण करथस ग।

तोर ले बढ़ के दुनिया म कोनो नइये

सबके भाग तै जगाथस ग।

सरग बरोबर भुईयां के तै भगवान ग।

तोला कहिथे माटी के मितान ग।

 

रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद

                  ग्राम चपरीद ( समोदा )

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