फागुन तिहार आगे
कविता
आगे फागुन तिहार
आगे फागुन तिहार।
उड़े रंग के बौछार।
कोयली कूके आमा के डार।
चारो कोती बगरे बसंत बहार।
ढोल नगाड़ा बाजै।
लईका सियान नाचै।
रंग पिचकारी चलावै।
संगी जहूरिया फाग गावे।
उड़ा थे गली खोर म रंग।
चारो मुड़ी है उछाह उमंग।
खेले होरी मीत-मितान के संग।
रंग गै हे गोरी के अंग-अंग।
हवा अईसे चले जईसे पिये हो भंग।
होरी म लगाओ सदभावना के रंग।
मत डारबे संगी रंग म भंग।
डॉ. शैल चन्द्रा
