जीवन
तब और संयम जीवन में हो
निस्वार्थ भाव से सेवा हो।
मन में ना कभी अभिमान हो
शुद्ध आचरण और स्वाभिमान हो।
लड़ना है सत्य को तो लड़लो
चाय सहना पड़े अपमान भी हो।।
संस्कारवान इसी जीवन में
मानव मूल्यों को अपना लो।
सरल सहज स्वभाव से
तुम सबको अपना बना लो।
सब मानव यहां अपने हैं
ना अलग धर्म ना अलग जात ।
मिलकर हाथ बढ़ाने से
अंधकार में भी हो शुभ प्रभात ।
जीवन सुख दुख का मेला है
कभी उज्जवल दिन तो कभी गहन रात ।
जीवन का संदेश यही
मानवता का सुमन का सुमन खिले ।
रंगों के इस त्यौहार पर
सबका आपस में मन मिले ।
विवेकानंद जी का संयम
झांसी की रानी का सहास ।
अनुराग प्रकृति के अं।चल सा
महाराणा प्रताप का स्वाभिमान हो ।
अनुसया जैसा पति धर्म
ध्रुव की जैसी भक्ति हो।
आपका असुर मिटाने को
हृदय तल में माता शक्ति हो ।
विश्व कुटुंबकम का भाव बसे
मानवता का उल्लास बसे ।
हृदय भाव में परोपकार
सरल ,सहज मल्हार बसे ।
नेकी का हर काम करें
पर कभी ना उसका गुणगान करें।
कर्म ही अपना धर्म बने
मानव सेवा का भाव बसे।