माझी भाषा शोधते
भाषा माझी माता
माझी भाषा शोधीत आहे
माझ्यातील माणसाचे तत्व
भाषेला आई म्हणतात
तिला हजार डोळे आहेत !
हे माझ्या आईने मला सांगितले होते
की
तिला सर्व काही माहित आहे,
ती माझी नस अन् नस ओळखते !!
मला वाटते
आमची भाषा सुद्धा आईच आहे
आमच्यातील ती नस अन् नस ओळखते,
ती ओळखते
की
कधी आमच्यात
आनंदाचे झरे पाजरू लागतात
केव्हा
आम्ही शिवीने अंधारून नाराज होतो
केव्हा
आम्ही उगवत्या सूर्या बरोबर जागे होतो
केव्हा रात्री सोबत झोपी जातो !!
आई ओळखून आहे
केव्हा आमचे गाणे आत्म्यातून गुंजू लागते अन् शरीराच्या वासनेने गाऊ लागते,
ती ओळखते
आमच्या कवितेत प्रेमाचे पारदर्शी पाणी
किती आहे
अन्
चमत्काराची कहाणी किती आहे!!
आई ओळखून आहे
आम्ही किती ऋचा गात आहोत
अन्
केव्हा तिला तोडून मोडून आपल्या साच्यात तिला जबरदस्तीने बसवत आहोत !!
आई ओळखून आहे
केव्हा
आम्ही तिच्या छातीवर पाय देऊन पुढे जात आहोत
आणि
केव्हा
आम्ही तिच्यासमोर गुन्हा कबूल आहोत !!
आई ओळखून आहे
केव्हा
आम्ही तिला आपल्या छंद अलंकारात गात आहोत
अन्
तिच्या पवित्र रूप कल्पनेत तारा छेडीत आहोत !!
आई सर्व काही ओळखून आहे
आम्ही
तिच्या श्वासाबरोबरच श्वास घेत आहोत, तिच्या सोबतच रडत-हसत आहोत,
ती आम्हाला जवळ घेते ,सांभाळते
आणि प्रत्येक युगात दोन पावले
पुढे मार्ग आक्रमण करण्याची शक्ती देते!!
सत्य हेच आहे की
तिला हजारो डोळे आहेत
ती आम्हाला पाहणे शिकवते
आणि
आपल्याला शोधायला,
त्यातच आमचे अस्तित्व गवसले आहे!!
खरंच ती आमची आई आहे
जिच्यामध्ये आम्ही वाढतो
आमचे पालनपोषण होते
अन्
तिच्या पासून निघणारी आमची यात्रा
आमच्या सत्वा पर्यंत पोहचते.
*****
मूळ हिंदी कविता - शैलजा सक्सेना
मराठी अनुवाद - विजय नगरकर
शैलजा सक्सेना
जन्म : मथुरा (उ.प्र.)
शिक्षा : दिल्ली विश्विद्यालय से पी. एच.डी. (शोधकार्य - "स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी काव्य में युद्ध की भूमिका") , एम. फिल. (शोधकार्य - "कामायनी की आलोचनाओं की समीक्षा"), एम.ए. तथा बी.ए. (ऑनर्स) में दिल्ली विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान तथा स्वर्ण पदक
संप्रति : जानकी देवी कॉलेज, (दिल्ली विश्विद्यालय) में 1989 से 1998 तक अध्यापन करने के पश्चात विदेश प्रवास किया। आजकल टोरोंटो (कनाडा) में निवास और यहाँ के हिन्दी साहित्य समाज में पूर्ण रूप से व्यस्त।
टोरोंटो में मानव संसाधन प्रबंधक के पद पर कार्यरत।
प्रकाशन :
"क्या तुमको भी ऐसा लगा? (काव्य-संग्रह - २०१४) प्रकाशक : हिन्दी राइटर्स गिल्ड (कैनेडा), अयन प्रकाशन (भारत)
सारिका, पाँचजन्य, समाज कल्याण, तुलसी, वामा, आदि अनेक पत्रिकाओं में कहानी, कविताएँ तथा लेखों का प्रकाशन।
"अष्ठाक्षर" नाम के संग्रह में अन्य सात कवियों के साथ आठ कविताओं का संकलन।
श्विद्यालय की कई पत्रिकाओं में लेख तथा संपादन कार्य। एक कविता संकलन, कहानी संग्रह शीघ्र ही प्रकाश्य।
पुरस्कार : सरस्वती पुरस्कार तथा मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
विशेष : अमेरिका में "हिन्दी, भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म तथा भाषा" पर कार्यशाला का संचालन किया तथा हिन्दी और भारतीय संस्कृति के अनेक कार्यों में भाग लिया। "हिन्दी साहित्य सभा, कनाडा" की भूतपूर्व उपाध्यक्ष।
"साहित्य कुंज" में साहित्यिक परामर्श सहयोग।
"हिन्दी राइटर्स गिल्ड" की संस्थापक निदेशिका।
सम्पर्क : shailjasaksena@gmail.com
मेरी भाषा ढूँढती है
मुझ में मनुष्यता के तत्त्व!
माँ कही जाती है भाषा,
तो हज़ारों आँखें हैं उसकी!
यह मेरी माँ ने कहा था
कि वह सब जानती है
मेरी नस नस पहचानती है,
मुझे लगता है,
हमारी भाषा माँ भी
पहचानती है हमारी नस-नस।
वह जानती है
कि
कब हम उसमें उल्लास से फूटते हैं
कब
गालियों में रूठते हैं
कब
उगने लगते हैं भोर से,
कब रात से डूबते हैं।
माँ पहचानती है,
कब हमारे गान
आत्मा से निकले हैं
कब
शरीर की वासना से,
कि हमारी कविताओं में
कितना प्रेम का पारदर्शी पानी है,
कितनी चमत्कार की कहानी है,
माँ जानती है
कब हम उसे ॠचाओं सा गाते हैं
और कब उसे
तोड़ मरोड़ कर अपने खाँचे में
ज़बरदस्ती बिठाते हैं,
माँ जानती है
जब बढ़ जाते हैं हम, उसकी छाती पर पाँव रख कर
जब हम झुकते हैं उसके आगे
अपने अपराध स्वीकार कर।
माँ जानती है
जब हम उसे सजाते हैं
अपने छंदों, अलंकारों से,
गीत गाते हैं,
उसके पवित्र रूप के कल्पना की तारों से।
माँ सब जानती है,
हम उसी में साँस लेते हैं
रोते हैं, हँसते हैं
वो हम को समेटती है, सँभालती है
और हर युग में दो कदम आगे बढ़ाती है।
सच ही है,
उसकी हज़ारों आँखें होती है,
वह हमें देखना सिखाती है
और अपने को पाना,
उसी में हमने अपने को जाना।
सच ही वो माँ है,
जिसमें हम पलते हैं, बढ़ते हैं,
उस से हो कर, उस में,
अपने तक चलते हैं!!
#शैलजा_सक्सेना