रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

ज़ख्म दिल के

ज़ख्म दिल के 


ज़ख्म दिल के हम दिखाएं तो दिखाएं कैसे,

हाल-ए-दिल तुमको सुनाएं तो सुनाएं कैसे।


तीर जो सीने में मेरे तेरी नज़रों के लगे,

दर्द-ए-दिल तुमको बताएं तो बताएं कैसे।


हमसे ताल्लुक ना कोई तक़रीर करते हो,

तेरे महबूब हम कहलाएं तो कहलाएं कैसे।


दूरी हमसे तुम फलक सी रखा करते हो,

तेरे पहलू में हम आएं तो आएं कैसे। 


नज़रों से नज़रें कभी तो मिलाओ सनम,

जाम नज़रों के पिलाएं तो पिलाएं कैसे।


रूसवा कर देगा ये बेदर्द ज़माना हमें,

तुम्हें हम समझाएं तो समझाएं कैसे।


सो गए आगोश में लेकर 'प्रेम' को तुम, 

नींद से तुमको जगाएं तो जगाएं कैसे।


प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु