ग़ज़ल
गजल
हज़ार ग़म हैं मगर मुस्कुराए जाते हैं।
बड़े सलीके़ से आंसू छिपाए जाते हैं।।
लहू लहू है हमारा बदन वफ़ा के लिए।
पर उसके बाद भी हम आज़माए जाते हैं।।
वफ़ा की राह पे चलना बड़ा ही मुश्किल है।
बड़े बड़ो के क़दम डगमगाए जाते हैं।।
मोहब्बतों की ये महफिल है ना समझ सुनले।
यहां पे अक्ल नहीं दिल लगाए जाते हैं।।
ज़ुबान फूल हो किरदार आईने जैसा।
कब ऐसे लोग ज़माने में पाए जाते हैं।।
ये तजुर्बा भी हमे जिंदगी ने बख्शा है।
दुआओ से ही मुकद्दर सजाए जाते हैं।।
हैं जिंदगी में मेरी उलझनें बहुत राशिद।
वो दर बता दे जहां गम मिटाए जाते हैं।।
इंजीनियर राशिद हुसैन