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तेरे सितम की कसम

तेरे सितम की कसम 



सुन ए सितमगर तेरे किए गए हर सितम की कसम, 

न कभी ज़ुबां से निकलेगी आह, तेरे दिए हर ज़ख्म की कसम,


हो बेशक जग-हँसाई, न रूसवा होने देंगे हम मोहब्बत,  

तुझ संग जो लगाई लगन हमने उस लगन की कसम,


इश्क ही खुदा, खुदा ही इश्क है , बुतकदा का सजदा करेंगे ता-उम्र,

अहद-ए-वफ़ा निभाएंगे मर्ग तक, ये खाते हैं कसम, कसम की कसम, 


ए खुदा मेरे यार‌ की बेवफ़ाई न देखना, होगी उसकी भी कोई मजबूरी,

वो बेवफ़ा नहीं, मुझे है यकीं उसकी चाहत के ग़म की कसम,


वो बेशक हो गया किसी ग़ैर का, मगर दिल उसका मेरे लिए धड़कता है,

उसकी धड़कन से ही सांस मेरी चलती है उसकी धड़कन की कसम,


है गुज़ारिश ए दुनियां वालो न देना कोई इल्ज़ाम मुझे,

ग़र लगा लूं लबों से हलाहल, नहीं जीना यार बिना जुदाई की कसम,


दम-ए-आखिर है और 'प्रेम' की ऑंखें भी हैं खुली,काश दीदार-ए-यार सो जाए,

न हुआ दीदार-ए-यार तो मरने के बाद खुली रहेंगी ये ऑंखें यार की कसम।




प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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