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सफर.... जीवन का

।।कविता।। 

।। सफर... जीवन का ।। 

जिंदगी का लक्ष्य कुछ और था , 

          लेकिन जिंदगी किसी और तरफ ले चली।

 जिस राह को हमने तलाशा था,

     उससे दूर हमें  कहीऔर ले चली ।

      बस चल रहे हैं रहा पर,

कुछ पता नहीं मंजिल कहां       

                      मिलेगी।

हर तरफ खुद की तलाश की कोशिश किया ।

पर तलाश हमेशा अधूरी मिली।

अब तो जिंदगी का सफर भी ,पूरा होने चला है। 

     पर मंजिल की तलाश खत्म नहीं हुई।

कभी तो सोचा अपने लिए    

            जीवन जिया जाए,

लेकिन वक्त हमेशा,

     दूसरों के जीने के लिए ,

मजबूर कर देता।

कभी इसी मैं सब खुशियां प्राप्त होती हैं ।

और कभी मन दुखी हो विचारों    

            में खो जाता है।

सफर हमारा कब खत्म होगा ।

       कब हम खुद को संतुष्ट कर पाएंगे। 

बस यही हम थम जाऐगे ,

   या आगे भी कुछ हमें मिलेगा।

कितना लंबा सफर है ,जिंदगी का। 

कितना लंबा सफर है ,जिंदगी का।

फिरभी हाथ कुछ नहीं आता है ।   

        बस चलते ही, चलते जीवन खत्म हो जाता है।

    थमने का कोई नाम ही नहीं है। 

बस चलते ही रहना है।

      अंत में बस ,जीवन का अंत

दुख ही दिए जाता है।

 

  ।। वंदना सोनेकर/ बोरीकर।।

( जबलपुर)

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