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भिड़े मजहबी होड़ में

भिड़े मजहबी होड़ में


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भूल गए हम साधना, भूल गए हैं राम।

मंदिर-मस्जिद फेर में, उलझे आठों याम॥

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प्रेम-त्याग ना आस्था, नहीं धर्म की खोज।

भिड़े मजहबी होड़ में, मंदिर-मस्जिद रोज़॥

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मंदिर-मस्जिद से भली, एक किताब दुकान।

एक साथ है जो रखे, गीता और कुरान॥

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मंदिर में हैं टाइलें, मस्जिद में कालीन।

लेकिन छप्पर में पढ़े, शिबू और यासीन॥

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भूखा प्यासा मर गया, मंदिर में इंसान।

लोग भोग देते रहे, पत्थर के भगवान॥

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मंदिर से मस्जिद कहे, बात एक हर बार।

मिटे न दुनिया की तरह, हम दोनों का प्यार॥

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मंदिर-मस्जिद बांटते, नफ़रत के पैगाम।

खड़े कोर्ट में बेवज़ह, अल्ला औ' श्रीराम॥

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मंदिर पूजन छोड़कर, उनको करूँ प्रणाम।

घर-कुनबे जो त्यागकर, मिटे देश के नाम॥

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मंदिर के भीतर चढ़े, पत्थर को पकवान।

हाथ पसारे गेट पर, भूखा है इंसान॥

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हम रहते हैं फूल से, हर पल यूं अनजान।

मंदिर और श्मशान का, नहीं जिसे हैं भान॥


—डॉo सत्यवान 'सौरभ'

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