वर्षांत का मनन
दिसंबर की सुनहरी धूप में सोचने लगी
कि साल का अंत आ गया
फिर से एक पन्ना पलटने का वक्त आ गया याद करने लगी उन बीते पलों को
जिनकी यादों में अक्सर दिन-रात बीत जाते हैं
उन यादों से थोड़ी सी मोहलत मांगी
यह कहकर कि मैं वापस आऊंगी........
कुछ मेरे साल का आकलन तो करने दो...
बैठी हूं सोचती
आंखों को मूंद कर
चेहरे को धूप में टिका कर
कभी हंसना
कभी रोना
कभी डरना
तो कभी जीतना
अनुभवों के बगीचे में
फूल खिले रोशन रोशन
खोए हुए पल तो कहीं रिश्ते टूटे ज़ार- ज़ार किसी ने खटखटाया
मैंने थोड़ा सा झांक कर
दरवाजे की झिरी से देखा
तो सपना रुवासा सा होकर बोला
मैं भी तो अधूरा रहा
मुझे भी तो वजूद नहीं मिला
मन में एक खालीपन सा महसूस हुआ
खुद को जीवन की उलझन में उलझता पाया
रास्ते मानो रुक से गए
अपने आप को बेबस पाया
इसी बीच हवा का झोंका
पानी की बूंद से भरा
ठंडक देने आया
जो अंतरमन तक छु गया
कुछ समझाया कि यह अंत नहीं....
यह तो नहीं शुरुआत है .....
फिर से दिसंबर से अगले दिसंबर तक
अपने आप को खड़ा करने की ताकत मिली नई दोस्ती
नहीं सीख
नया ज्ञान
हर पल एक नया आयाम
स्वयं पर गर्व महसूस करती हूं
हिम्मत न हारना ,वजूद बचाना
अब मैं सीख चुकी हूं।
बीते महीनो के अनुभवों से सीखते हुए
आगे बढ़ाने की ठान ली है
नए अध्याय को जोड़ने की ताकत
मैंने पा ली है।
हर पल एक नए अवसर है
खुद को बेहतर बनाने का
अब नए साल को नई शुरुआत के साथ मनाने का।
