इक्कीसवीं सदी के ऐ पच्चीसवें वर्ष...!
" इक्कीसवीं सदी के ऐ पच्चीसवें वर्ष...!"
नव उत्साह संग नव उमंगों को नव अंकुरित कर,
नव विश्वास लिए नव चेतनाओं को तरंगित कर,
नया एहसास जगाने तुम्हारा चुपके से चले आना,
और फिर, नई आस जगा नया आभास दिलाना ,,
जीवन के सपने बहुतेरे, निसदिन ताने-बाने गुनते,
अनुकूल वक्त की प्रतिकूल परिस्थितियों में ठहरते,
कुछ पल थमते, नई आशाओं पर फिर थिरकते वो,
नव उर्जा से नव आयाम तुम संग पा जाएँ सतत् वो,,
तुम आए हो तो चिंता छोड़, आओ हम करें चिंतन,
भीतर की वृत्तियों का बेजोड़, आओ हम करें मंथन,
मन में नई उम्मीदें जगा, चॉंद-तारों से करें हम बातें,
उम्मीदों का थाम दामन, दूर गगन भी झॉंक हैं आते,,
दिलों से दिल का हो मिलन, खुशियों से दामन भरें,
कण-कण को तुम संग, पल-पल यूँ आह्लादित करें,
जानी-अनजानी सी राहों पर, कॉंटे मिलें चाहे हज़ार,
प्रेम की परिपाटी से तुम, चमन करना सदा गुलज़ार,,
जीवन के आलय की तुम तो हो जैसे एक नई किताब,
आवरण संग पृष्ठों का सृजन चलो करें हम लाजवाब,
"वसुधैव कुटुम्बकम्" की नीति पर सरहदों सभी हटाएँ,
समभाव औ' सद्भाव से रिश्तों की कड़ियॉं जोड़ जाएँ,,
सुख, समृद्धि संग सदबुद्धि का तुम प्रखर ज्ञान देना,
इंसान के मन में संस्कारों, सदविचारों की पहचान देना,
नूतन वर्ष अभिनंदन तुम्हारा, करते हैं हम सब आज,
इक्कीसवीं सदी के ऐ पच्चीसवें वर्ष...
बन जाना जन-जन के जीवन के तुम शिरोमणि ताज,,
मुस्कुराना, खिलखिलाना स्वछंद तुम इस वसुंधरा पर,
नया एक अलख जगाना मन-चितवन औ' अधरों पर,
सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य, सम्मान की कर मंगलकामना,
संयम, सादगी के स्वरूप तुम्हारी सर्वत्र हो आराधना।
- पूजा सूद डोगर
शिमला
हि. प्र.
