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नव वर्ष का आगमन

पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को
 नव वर्ष की प्रथम तिथि आई है
 साथ में उमंगो का सैलाब लाई है
 उमंगे जो सदा जवां रहती हैं
फिजाओं को सदा मेहकाती है
 कुछ कर गुजरने की चाहत मुझे हर वर्ष उकसाती रहती है
यकीन करती हूं इस पंक्ति पर सदा
कि जो बीत गया सो बीत गया
अब जो आगे है वही अपना है
उसी को अपनाना है उसी का कल सवरना है
क्यों देखूं ?
मैं पीछे मुड़कर
 पीछे मुड़ने से ही तो दर्द पाया है
 दर्द भी क्या कहूं....यारों अपनों ने ही दिल दुखाया है
 इसी सोच ने मुझे खोखला बनाया है
 12 बजाते ही सारा विश्व रंगीनियो में खो जाता है शुभकामनाओं का आदान प्रदान  शुरू हो जाता है
इस भेड़ चाल में शामिल हो जाती हूं  आदान-प्रदान का सिलसिला
 दिन ढल जाता है
 दिन तो ढलना ही है
सूरज को तो अस्त होना ही है
 क्योंकि  फिर से एक नया सवेरा लेकर
एक नई उमंग लेकर संसार को प्रकाशित जो करना है
चारों तरफ नए साल के नए सूरज ने अपनी करने फैलाई है
 मानो हर जीवन को मुस्कुराने की राह बताई है
नया वर्ष ,नया सवेरा ,नव चेतना का संचार जीवन में सदा बहता रहे यही शुभकामनाओं ने साथ निभाया है। 

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