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महाकुंभ : भक्ति की शक्ति से मुक्ति

 " महाकुंभ : भक्ति की शक्ति से मुक्ति "


सनातन धर्म में महाकुंभ का, महत्व है अपरिमित,

प्रयागराज के पावन संगम पे, संयोजित है अमित,

पौष मास की पूर्णिमा से, आरंभ होता है यह पर्व,

महाशिवरात्रि तक  बिखेरता, अनुपम छटा अपूर्व,,


समुद्र मंथन की बेला पर, अमृत कलश प्रकट हुआ,

देव-दानवों में तो उसे, प्राप्य हेतु युद्ध घनघोर हुआ,

बूँदें चार अमृत की, धरा पर उस समय जो गिर गईं,

अभिहिति उन स्थानों को, सर्वोच्च तबसे मिल गई,,


छ: वर्षों बाद अर्धकुंभ, बारह पश्चात होता है कुंभ,

संयोग निराला,एक सौ चौवालीस वर्षों में महाकुंभ,

संतों-साधुओं, मुनियों-तपस्वियों के, दर्स यहॉं मिलते,

देव भी रूप बदल, इस पावन धरा पर सर्वत्र मिलते,,


महत्व इसका सर्वोच्च,अनूठा इसका होता आयोजन,

धर्म की आस्था,सामाजिक एकता का रहता प्रायोजन, 

पाप सारे ही धुल जाते, करते हैं जब त्रिवेणी पर स्नान,

मोक्ष प्राप्त होता, करते हैं संग-संग जब जप औ' ध्यान,


आध्यात्मिक ज्ञान,सामाजिक समरसता का यह प्रतीक,

आस्था,विश्वास,एकता, दिखती चहुँ ओर यहॉं रमणीक,

भक्ति की शक्ति से मुक्ति, त्रिवेणी पर यूँही चिरकाल रहे,

वैश्विक बंधुता,सांस्कृतिक सौहार्द सनातन का भाल रहे।


- पूजा सूद डोगर 

  शिमला 

  हि. प्र.

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