स्त्री का अस्तित्व मुक्त कविता
एक क्षण आता है जीवन के समर में,
जब एक पुरुष टकराता है —
न सिर्फ एक स्त्री से,
बल्कि एक जागृत स्त्री से।
वह स्त्री — जो आग से गुजरी है,
जो राख से पुनर्जन्मी है।
जिसने स्वयं को पहचान लिया है,
जो अपने भीतर के तूफान को
सुरों में बदल चुकी है।
वह नहीं आई है
अहंकार की सूखी रेत पर
संवेदनाओं के फूल उगाने यहाँ।
वह नहीं आएगी
आपके घावों पर
नमक छिड़कने या मरहम बनने।
वह आई है
सच का आईना थामे,
उसके पास शब्द नहीं —
उसके मौन में ही आकाश की गूंज है।
वह चिल्लाती नहीं,
वह तर्क नहीं करती,
वह अस्तित्व की गहराइयों में उतरती है।
वह प्रेम के तलछट को
खंगालती है।
वह मौन की तलवार से
झूठ के परदे चीर देती है।
उसका समर्पण कमजोरी नहीं,
बल्कि दहकती हुई शक्ति है।
वह क्रोध से नहीं जलाती,
सत्य से मुक्त करती है।
वह समझौता नहीं करती,
वह देखती है —
आपके अंधेरों को,
आपके खोखलेपन को।
यदि उसकी दृष्टि में
आपकी आत्मा का कोई प्रतिबिंब नहीं,
यदि वह देखती है
कि आप केवल शब्दों के सौदागर हैं,
तो वह रुकेगी नहीं।
क्योंकि जागृत स्त्री
ध्यान की भूखी नहीं है।
वह सामंजस्य की प्यासी है।
वह हृदय की योद्धा है,
आग के हर कण से निखरी है।
उसका प्रेम एक पवित्र अग्नि है,
जिसमें छलावा जलकर भस्म हो जाएगा।
वह प्रतीक्षा करती है
उस पुरुष की —
जो अपने अंधेरों से जूझ चुका हो,
जिसने अपने घावों को
स्वीकारने का साहस किया हो।
एक ऐसा पुरुष,
जिसकी मर्दानगी नियंत्रण में नहीं,
बल्कि चेतना में निहित हो।
वह देखती है
आपके आत्म-मूल्य को,
आपके राक्षसों से जंग को।
वह देखती है
कि आपने अपने दर्द को
क्या परिभाषा दी है।
केवल वह पुरुष,
जो अपने दिल की दीवारों को गिराकर,
आत्मा को नंगा कर सके,
वही उसके सम्मुख
सम्मान के रूप में खड़ा हो सकता है।
तभी वह
अपने आंतरिक बगीचे के द्वार खोलती है —
वह पवित्र स्थान
जहाँ प्रेम की नदियाँ
स्वाभाविक रूप से बहती हैं।
सच्चा पुरुष
उसकी गहराई से नहीं घबराता।
वह उसकी जंगली ऊर्जा को
पूजा की तरह देखता है।
उसके शरीर को
वह विजय नहीं,
बल्कि देवालय समझता है।
वह जानती है
कि उसकी भावनाओं का हर तूफान
एक आशीर्वाद है।
उसका दिल
अधूरे पुरुष का खेल का मैदान नहीं।
वह बचाए जाने के लिए
चिल्लाती नहीं।
वह केवल इंतजार करती है —
आत्मा से आत्मा के मिलन का,
सत्य से सत्य के मिलन का,
अग्नि से अग्नि के मिलन का।
यदि आप अब भी
व्यंग्य की ढाल पहनकर,
वासना के शस्त्र लिए
उसके सामने खड़े हैं —
तो जान लें —
वह आपको बदलने की कोशिश नहीं करेगी।
वह चली जाएगी।
क्योंकि उसका समय पवित्र है।
लेकिन यदि आप
अपने घावों को
नमन करने का साहस रखते हैं,
अपनी आत्मा को
परिष्कृत करने का
दर्द सह सकते हैं,
तो वह आपका स्वागत करेगी।
और जब वह स्वागत करेगी,
तो वह आपको ऐसा प्रेम देगी —
जो आपके हर भ्रम को जला देगा।
इतना गहरा,
इतना शुद्ध,
कि लगेगा जैसे
आप घर लौट आए हैं —
उस स्थान पर,
जिसे आप कभी छोड़कर ही नहीं गए थे।
प्रेम धैर्यवान होता है।
वासना अधीर।
प्रेम संरचना है।
वासना ध्वंस।
प्रेम पवित्र है।
वासना विष।
और अंत में,
केवल प्रेम ही
शाश्वत होता है।
पुरुषों — जागो।
अंतर्मुखी हो जाओ।
अपने दिल को तराशो।
अपनी आत्मा को शुद्ध करो।
क्योंकि जागृत स्त्री
कोई कल्पना नहीं,
कोई मृगतृष्णा नहीं।
वह अस्तित्व में है,
उसकी आँखों में ब्रह्मांड की परछाइयाँ हैं,
उसकी साँसों में समय के अनकहे रहस्य हैं।
वह प्रतीक्षा कर रही है —
उस पुरुष का,
जो अपने भीतर के अंधेरों से
दीपक बनकर निकला हो।
जिसको एहसास है
कि वह केवल मांस और हड्डी नहीं,
बल्कि एक धड़कता हुआ ब्रह्मांड है।
....... ✍️रीमा महेन्द्र ठाकुर
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत
