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बेटियों का ये.... कैसा सफर

आती है बेटियाँ घर में रौनक बनकर,  
जीती है अपने बचपनें को हर कोना देखकर,

यादों को समेटकर अपनी झोली में ,वापस लौट जाती है ससुराल,
आना का वायदा कर अगली छुट्टी में आऊंगी ,लौटकर मां न करना मलाल।

छोड़ जाती है घर में अपनी मीठी बातों की छाप,
हर कमरे में छपी रहती है उनकी जादुई पदचाप।

माँ की आँखों में नमी और पिता का सूनापन,
भाई ढूंढता है शरारतों का वो प्यारा बचपन,
घर की दीवारों पर टंगी रह जाती हैं पुरानी तस्वीरें,
अगली मुलाक़ात की उम्मीद में पलती हैं तकदीरें।

ससुराल में भी रचती है एक नया संसार,
प्यार और जिम्मेदारी से करती है हर रिश्ते को स्वीकार,

फिर भी मन में बसी रहती है अपने घर की प्रति प्रीत, करती अगली छुट्टी का इंतज़ार, जैसे कोई हो मधुर गीत।

आएगी फिर से बनकर घर की रौनक,
भर देगी उदासी में फिर से एक नई चमक,

यह सिलसिला चलता रहता है कभी दिल में बसती है कभी करनी पड़ती जुदाई।
बेटी से कभी प्यार जताते ,कभी करनी पड़ती इनकी विदाई ।

बेटियाँ  तो हैं हर घर की अनमोल इकाई ।
कभी अपनी सी लगे कभी लगे पराई।

शिल्पा मोदी "सत्या"


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